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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Thursday, 28 February 2013

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 2



ॐ सांई राम

आप सभी को साईं रसोंई छत्तरपुर की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं |


 प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है |
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 2


ग्रन्थ लेखन का ध्येय, कार्यारम्भ में असमर्थता और साहस, गरमागरम बहस, अर्थपूर्ण उपाधि हेमाडपन्त, गुरु की आवश्यकता ।
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गत अध्याय में ग्रन्थकार ने अपने मौलिक ग्रन्थ श्री साई सच्चरित्र (मराठी भाषा) में उन कारणों पर प्रकाश डाला था, जिननके दृारा उन्हें ग्रन्थरतना के कार्य को आरन्भ करने की प्रेरणा मिली । अब वे ग्रन्थ पठन के योग्य अधिकारियों तथा अन्य विषयों का इस अध्याय में विवेचन करते हैं ।

ग्रन्थ लेखन का हेतु
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Wednesday, 27 February 2013

श्री साईं लीलाएं - ऊदी के चमत्कार से पुत्र-प्राप्ति



ॐ सांई राम

कल हमने पढ़ा था..
कुत्ते की पूँछ

श्री साईं लीलाएं


ऊदी के चमत्कार से पुत्र-प्राप्ति


शिरडी के पास के गांव में लक्ष्मीबाई नाम की एक स्त्री रहा करती थी| नि:संतान होने के कारण वह रात-दिन दु:खी रहा करती थी| जब उसको साईं बाबा के चमत्कारों के विषय में पता चला तो वह द्वारिकामाई मस्जिद में आकर वह साईं बाबा के चरणों पर गिरने ही वाली थी कि साईं बाबा ने तुरंत उसे कंधों से थाम लिया और बोले- "मां, यह क्या करती हो ?"

लक्ष्मी बुरी तरह से रोने लगी|

Tuesday, 26 February 2013

श्री साईं लीलाएं - कुत्ते की पूँछ



ॐ सांई राम

कल हमने पढ़ा था..
दयालु साईं बाबा

श्री साईं लीलाएं


कुत्ते की पूँछ

पंडितजी चुपचाप बैठे अपने भविष्य के विषय में चिंतन कर रहे थे| उन्हें पता ही नहीं चला कि कब एक आदमी उनके पास आकर खड़ा हो गया है| जब पंडितजी ने कुछ ध्यान न दिया तो, उसने स्वयं आवाज दी|

"राम-राम पंडितजी|"

पंडितजी चौंक गये|

"क्या बात है, किस सोच में पड़े हो ?"

Monday, 25 February 2013

श्री साईं लीलाएं - दयालु साईं बाबा


ॐ सांई राम

कल हमने पढ़ा था..
बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश
श्री साईं लीलाएं
दयालु साईं बाबा


दोपहर का समय था!

साईं बाबा खाना खाने के बाद अपने भक्तों से वार्तालाप कर रहे थे कि अचानक सारंगी के सुरों के साथ तबले पर पड़ी थाप से मस्जिद की गुम्बदें और मीनारें गूंज उठीं|

सब लोग चौंक उठे| दूसरे ही क्षण मस्जिद के दालान पर सारंगी के सुरों और तबलों की थापों के साथ घुंघरों की रुनझुन भी गूंज उठी| सभी शिष्य एक रूपसी नव नवयौवना की ओर देखने लगे| जिसके सुंदर बदन पर रेशमी घाघरा तथा चोली थी| जब वह नाचते हुए तेजी के साथ गोल-गोल चक्कर काटती थी, तो उसका रेशमी घाघरा गोरी-गोरी टांगों से ऊपर तक उठ जाता था|

Sunday, 24 February 2013

श्री साईं लीलाएं - बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश


ॐ सांई राम

कल हमने पढ़ा था..
पानी से दीप जले

श्री साईं लीलाएं

बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश
पंडितजी साईं बाबा को गांव से भगाने के विषय में सोच-विचार कर रहे थे कि तभी एक पुलिस कोंस्टेबिल आता दिखाई दिया| पंडितजी ने उसे दूर से ही पहचान लिया था| उसका नाम गणेश था| वह पंडितजी के पास आता-जाता रहता था|

Saturday, 23 February 2013

श्री साईं लीलाएं - पानी से दीप जले

ॐ सांई राम

कल हमने पढ़ा था..
साईं बाबा का आशीर्वाद



श्री साईं लीलाएं


 
  
पानी से दीप जले

साईं बाबा जब से शिरडी में आये थे| वे रोजाना शाम होते ही एक छोटा-सा बर्तन लेकर किसी भी तेल बेचने वाले दुकानदार की दुकान पर चले जाते और रात को मस्जिद में चिराग जलाने के लिए थोडा-सा तेल मांग लाया करते थे|

दीपावली से एक दिन पहले तेल बेचने वाले दुकानदार शाम को आरती के समय मंदिर पहुंचे| साईं बाबा के मांगने पर वे उन्हें तेल अवश्य दे दिया करते थे, परंतु साईं बाबा के बारे में उनके विचार कुछ अच्छे नहीं थे|

उन्हें साईं बाबा के पास मस्जिद में जाकर बैठना अच्छा नहीं लगता था| वहां का वातावरण उन्हें अच्छा नहीं लगता था, वह उनकी भावनाओं से मेल नहीं खाता था| शाम को दुकान बंद करने के बाद वह मंदिर में पंडित के साथ गप्पे मारना, दूसरों की बुराई करना अच्छा लगता था| साईं बाबा की निंदा करने पर पंडितजी को बड़ा आत्मसंतोष प्राप्त होता था|

"
देखा भाई, कल दीपावली है और शास्त्रों में लिखा है कि दीपावली के दिन जिस घर में अंधेरा रहता है, वहां लक्ष्मी नहीं आती है| जो भी लक्ष्मी का थोड़ा-बहुत अंश उस घर में होता है, वह भी चला जाता है| सुनो, कल जब साईं बाबा तेल मांगने आएं तो उन्हें तेल ही न दिया जाए| वैसे तो उनके पास सिद्धि-विद्धि कुछ है नहीं, और यदि होगी भी तो कल दीपावली के दिन मस्जिद में अंधेरा रहने के कारण लक्ष्मी, उसका साथ छोड़कर चली जाएगी|"

"
यह तो आपने मेरे मन की बात कह दी पंडितजी ! हम लोग भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे| हम कल साईं बाबा को तेल नहीं देंगे|" एक दुकानदार ने कहा|

"
मैं तो सोच रहा हूं कि तेल बेचा ही न जाए| पूरा गांव उसका शिष्य बन गया है और उसकी जय-जयकार करते नहीं थकते| गांव में शायद ही दो-चार के घर इतना तेल हो कि कल दीपावली के दीए जला सकें| बस हमारे चार-छ: घरों में ही दीए जलेंगे|" - दूसरे दुकानदार ने कहा|

"
हां, यही ठीक रहेगा|" पंडितजी तुरंत बोले - "सचमुच तुमने बिल्कुल ठीक कहा है| मैंने तो इस बारे में सोचा भी नहीं था|

"
फिर यह तय हो गया कि कल कोई भी दुकानदार तेल न बेचेगा चाहे कोई कितनी ही कीमत क्यों न दे|"

अगले दिन शाम को साईं बाबा तेल बेचने वाले की दुकान पर पहुंचे| उन्होंने कहा - "सेठजी, आज दीपावली है| थोड़ा-सा तेल ज्यादा दे देना|"

"
बाबा, आज तो तेल की एक बूंद भी नहीं है, कहां से दूं ? सारा तेल कल ही बिक गया| सोचा था कि सुबह को जाकर शहर से ले आऊंगा, त्यौहार का दिन होने के कारण दुकान से उठने की फुरसत ही नहीं मीली| आज तो अपने घर में भी जलाने के लिए तेल नहीं है|" दुकानदार ने बड़े दु:खी स्वर में कहा|

साईं बाबा आगे बढ़ गए|

तेल बेचने वाले सभी दुकानदार ने यही जवाब दिया|

साईं बाबा खाली हाथ लौट आये|

तभी एक कुम्हार जो उनका शिष्य था, उन्हें एक टोकरी दीये दे गया|

साईं बाबा के मस्जिद खाली हाथ लौटने पर उनके शिष्यों को बड़ी निराशा हुई| उन्होंने बड़ी खुशी के साथ दीपावली के कई दिन पहले से ही मस्जिद की मरम्मत-पुताई आदि करना शुरू कर दी थी| उन्हें आशा थी कि अबकी बार मस्जिद में बड़ी धूमधाम के साथ दीपावली मनायेंगे| रात भर भजन-कीर्तन होगा| कई शिष्य अपने घर चले गए| घर से पैसे और तेल खरीदने के लिए चल पड़े| वह जिस भी दुकानदार के पास तेल के लिए पहुंचते, वह यही उत्तर देता कि आज तो हमारे घर में भी जलाने के लिए तेल की एक बूंद भी नहीं है|

सभी शिष्य-भक्तों को निराशा के साथ बहुत दुःख भी हुआ| वे सब खाली हाथ मस्जिद लौट आए|

"
बाबा ! गांव का प्रत्येक दुकानदार यही कहता है कि आज तो उसके पास अपने घर में जलाने के लिए भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|"

"
तो इसमें इतना ज्यादा दु:खी होने कि क्या बात है ? दुकानदार सत्य ही तो कह रहे हैं| सच में ही उनकी दुकान और घर में आज दीपावली की रात को एक दीया तक जलाने के लिए तेल की एक बूंद भी नहीं है, दीपावली मनाना तो उनके लिए बहुत दूर की बात है|" साईं बाबा ने मुस्कराते हुए कहा और फिर मस्जिद के अंदर बने कुएं पर जाकर उन्होंने कुएं में से एक घड़ा पानी भरकर खींचा|

भक्त चुपचाप खड़े उनको यह सब करते देखते रहे| साईं बाबा ने अपने डिब्बे, जिसमें वह तेल मांगकर लाया करते थे, उसमें से बचे हुए तेल की बूंदे उस घड़े के पानी में डालीं और घड़े के उस पानी को दीयों में भर दिया| फिर रूई की बत्तियां बनाकर उन दीयों में डाल दीं और फिर बत्तियां जला दीं| सारे दिये जगमग कर जल उठे| यह देखकर शिष्यों और भक्तों की हैरानी का ठिकाना न रहा|

"
इन दीयों को मस्जिद की मुंडेरों, गुम्बदों और मीनारों पर रख दो| अब ये दिये कभी नहीं बुझेंगे| मैं नहीं रहूंगा तब भी ये इसी तरह जगमगाते रहेंगे|"साईं बाबा ने वहां उपस्थित अपने शिष्यों और भक्तजनों से कहा और फिर एक पल रुककर बोले - "आज दीपावली का त्यौहार है, लेकिन गांव में किसी के घर में भी तेल नहीं है| जाओ, प्रत्येक घर में इस पानी को बांट आओ| लोगों में कहना कि दिये में बत्ती डालकर जला दें| दीये सुबह सूरज निकलने तक जगमगाते रहेंगे|"

"
बोलो साईं बाबा की जय!" सभी शिष्यों और भक्तों ने साईं बाबा का जयकारा लगाया और घड़ा उठाकर गांव में चले गए| सभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे|

दीपावली की रात का अंधकार धीरे-धीरे धरती पर उतरने लगा था| तब तेल बेचने वाले दुकानदारों और पंडितजी के घर को छोड़कर प्रत्येक घर में साईं बाबा के घड़े का पानी पहुंच गया था|

साईं बाबा के शिरडी में आने के बाद में शिरडी और आस-पास के मुसलमान हिन्दुओं के साथ दीपावली का त्यौहार बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाने लगे थे और हिन्दुओं ने भी ईद और शब्बेरात मनानी शुरू कर दी थी| पूरा गांव दीयों की रोशनी से जगमगा उठा| उन दीयों की रोशनी अन्य दिन जलाए जाने वाले दीयों से बहुत तेज थी| पूरे गांव भर में यदि कहीं अंधेरा छाया हुआ था तो वह पंडितजी और तेल बेचने वाले दुकानदारों के घर में|

दुकानदार मारे आश्चर्य के परेशान थे कि कल शाम तो जो बर्तन तेल से लबालब भरे हुए थे, इस समय बिल्कुल खाली पड़े थे, जैसे उनमें कभी तेल भरा ही न गया हो| यही दशा पंडितजी की भी थी| शाम को जब उनकी पत्नी दीये जलाने बैठी तो उसने देखा तेल की हांडी एकदम खाली पड़ी है| उसने बाहर आकर पंडितजी से तेल लाने के लिए कहा|

"
तुम चिंता क्यों करती हो ? मैं अभी लेकर आता हूं|

पंडितजी हांडी लेकर जब तेल बेचने वाले दुकानदारों के पास पहुंचे| वे सब भी अपने माथे पर हाथ रखे इसी चिंता में बैठे थे कि बिना तेल के वह दीपावली कैसे मनायेंगे ?

जब पंडितजी ने दुकान पर जाकर तेल मांगा, तो वे बोले - "पंडितजी, न जाने क्या हुआ, कल शाम को ही हम लोगों ने तेल ख़रीदा था| सुबह से एक बूंद तेल नहीं बेचा, लेकिन अब देखा तो तेल की एक बूंद भी नहीं है| बर्तन इस तरह खाली पड़े हैं, जैसे इनमें कभी तेल था ही नहीं|" सभी दुकानदार ने यही कहानी दोहरायी|

आश्चर्य की बात तो यह थी कि तेल से भरे बर्तन बिल्कुल ही खाली हो गए थे| न घर में तेल की एक बूंद थी और न ही दुकान में| पूरा गांव रोशनी से जगमगा रहा था| केवल तेल बेचने वाले दुकानदारों और पंडितजी के घर में अंधकार छाया हुआ था|

"
यह सब साईं बाबा की ही करामात है| हम लोगों ने उन्हें तेल देने से मना किया था और उसने कहा था कि आज तो हमारे घर और दुकान में एक बूंद भी तेल नहीं है|" -एक दुकानदार ने कहा - "चलो बाबा के पास चलकर उनसे माफी मांगें|"

फिर तेल बेचने वाले सभी दुकानदार साईं बाबा के पास पहुंचे| उनसे माफी मांगने लगे - "बाबा, हम आपकी महिमा को नहीं समझ पाए| हमें क्षमा करें| हम लोगों से बहुत बड़ा अपराध हुआ है| हमने आपसे झूठ बोला था|" -दुकानदारों ने साईं बाबा के चरणों में गिरते हुए कहा|

"
इंसान गलतियों का पुतला है| अपराधी तो वह है, जो अपने अपराध को छिपाता है| जो अपने अपराध को स्वीकार कर लेता है, वह अपराधी नहीं होता| तुमने अपराध नहीं किया|" -साईं बाबा ने दुकानदारों को उठाकर सांत्वना देते हुए कहा और फिर उनकी ओर देखते हुए बोले - "तात्या, अभी उस घड़े में थोड़ा-सा पानी है| उसे इन लोगों के घरों में बांट आओ - और सुनो पंडितजी के घर भी दे आना| उन बेचारों के घर में भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|"

तात्या सभी दुकानदारों के घरों में घड़े का पानी बांट आया, परंतु पंडितजी ने लेने से इंकार कर दिया| सारा गांव दीयों की रोशनी से जगमगा रहा था| इसके बावजूद अभी भी एक घर में अंधेरा छाया हुआ था और वह घर था पंडितजी का| दीपावली के दिन उनके घर में अंधेरा ही रहा| एक दीपक जलाने के लिए भी तेल नहीं मिला| साईं बाबा के गांव में कदम रखते ही लक्ष्मी तो उनसे पहले ही रूठ गयी थी और दीपावली के दिन घर में अंधेरा पाकर तो बिलकुल ही रूठ गयी| कुछ दुकानदारों जो मंदिर में सुबह-शाम जाया करते थे, दीपावली की रात से उन्होंने मंदिर में आना छोड़ दिया| साईं बाबा की भभूत के कारण उनका औषधालय तो पहले ही बंद हो चुका था| मजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दिया, तो पंडितजी का क्रोध अपनी चरम सीमा को लांघ गया|

"
इस ढोंगी साईं बाबा को गांव से भगाए बिना अब काम नहीं चलेगा|" पंडितजी न मन-ही-मन फैसला किया| 
कल चर्चा करेंगे... बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Friday, 22 February 2013

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 - विभूतियोग


श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 - विभूतियोग
विभूति व योगशक्ति (अध्याय 10 शलोक से 7)
श्रीभगवानुवाच:
भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया॥१०- १॥
फिर से,हे महाबाहो, तुम मेरे परम वचनों को सुनो। क्योंकि तुम मुझे प्रिय होइसलिय मैं तुम्हारे हित के लिये तुम्हें बताता हूँ।

Thursday, 21 February 2013

श्री साई सच्चरित्र – अध्याय-1


 सांई राम
आप सभी को साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगाकिसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है... 

श्री साई सच्चरित्र – अध्याय-1

गेहूँ पीसने वाला एक अद्भभुत सन्त वन्दना - गेहूँ पीसने की कथा तथा उसका तात्पर्य
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पुरातन पद्घति के अनुसार श्री हेमाडपंत श्री साई सच्चरित्र का आरम्भ वन्दना करते हैं 

1.
प्रथम श्री गणेश को साष्टांग नमन करते हैंजो कार्य को निर्विध समाप्त कर उस को यशस्वी बनाते हैं कि साई ही गणपति हैं 

2.
फिर भगवती सरस्वती कोजिन्होंने काव्य रचने की प्रेरणा दी और कहते हैं कि साई भगवती से भिन्न नहीं हैंजो कि स्वयं ही अपना जीवन संगीत बयान कर रहे हैं 

3.
फिर ब्रहाविष्णुऔर महेश कोजो क्रमशः उत्पत्तिसि्थति और संहारकर्ता हैं और कहते हैं कि श्री साई और वे अभिन्न हैं  वे स्वयं ही गुरू बनकर भवसहगर से पार उतार देंगें 

4.
फिर अपने कुलदेवता श्री नारायण आदिनाथ की वन्दना करते हैं  जो कि कोकण में प्रगट हुए  कोकण वह भूमि हैजिसे श्री परशुरामजी ने समुद् से निकालकर स्थापित किया था  तत्पश्चात् वे अपने कुल के आदिपुरूषों को नमन करते हैं 

5.
फिर श्री भारदृाज मुनि कोजिनके गोत्र में उनका जन्म हुआ  पश्चात् उन ऋषियों को जैसे-याज्ञवल्क्यभृगुपाराशरनारदवेदव्याससनक-सनंदनसनत्कुमारशुकशौनकविश्वामित्रवसिष्ठवाल्मीकिवामदेवजैमिनीवैशंपायननव योगींद्इत्यादि तथा आधुनिक सन्त जैसे-निवृतिज्ञानदेवसोपानमुक्ताबाईजनार्दनएकनाथनामदेवतुकारामकान्हानरहरि आदि को नमन करते हैं 

6.
फिर अपने पितामह सदाशिवपिता रघुनाथ और माता कोजो उनके बचपन में ही गत हो गई थीं  फिर अपनी चाची कोजिन्होंने उनका भरण-पोषण किया और अपने प्रिय ज्येष्ठ भ्राता को नमन करते हैं 

7.
फिर पाठकों को नमन करते हैंजिनसे उनकी प्रार्थना हैं कि वे एकाग्रचित होकर कथामृत का पान करें 

8.
अन्त में श्री सच्चिददानंद सद्रगुरू श्री साईनाथ महाराज कोजो कि श्री दत्तात्रेय के अवतार और उनके आश्रयदाता हैं और जो ब्रहा सत्यं जगनि्मथ्या का बोध कराकर समस्त प्राणियों में एक ही ब्रहा की व्यापि्त की अनुभूति कराते हैं 
श्री पाराशरव्यासऔर शांडिल्य आदि के समान भक्ति के प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कर अब ग्रंथकार महोदय निम्नलिखित कथा प्रारम्भ करते हैं 


गेहूँ पीसने की कथा
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सन् 1910 में मैं एक दिन प्रातःकाल श्री साई बाबा के दर्शनार्थ मसजिद में गया  वहाँ का विचित्र दृश्य देख मेरे आश्चर्य का ठिकाना  रहा कि साई बाबा मुँह हाथ धोने के पश्चात चक्की पीसने की तैयारी करने लगे  उन्होंने फर्श पर एक टाट का टुकड़ा बिछाउस पर हाथ से पीसने वाली चक्की में गेहूँ डालकर उन्हें पीसना आरम्भ कर दिया 
मैं सोचने लगा कि बाबा को चक्की पीसने से क्या लाभ है  उनके पास तो कोई है भी नही और अपना निर्वाह भी भिक्षावृत्ति दृारा ही करते है  इस घटना के समय वहाँ उपसि्थत अन्य व्यक्तियों की भी ऐसी ही धोरणा थी  परंतु उनसे पूछने का साहस किसे था  बाबा के चक्की पीसने का समाचार शीघ्र ही सारे गाँव में फैल गया और उनकी यह विचित्र लीला देखने के हेतु तत्काल ही नर-नारियों की भीड़ मसजिद की ओर दौड़ पडी़ 
उनमें से चार निडर सि्त्रयां भीड़ को चीरता हुई ऊपर आई और बाबा को बलपूर्वक वहाँ से हटाकर हाथ से चक्की का खूँटा छीनकर तथा उनकी लीलाओं का गायन करते हुये उन्होंने गेहूँ पीसना प्रारम्भ कर दिया 
पहिले तो बाबा क्रोधित हुएपरन्तु फिर उनका भक्ति भाल देखकर वे षान्त होकर मुस्कराने लगे  पीसते-पीसते उन सि्त्रयों के मन में ऐसा विचार आया कि बाबा के  तो घरदृार है और  इनके कोई बाल-बच्चे है तथा  कोई देखरेख करने वाला ही है  वे स्वयं भिक्षावृत्ति दृारा ही निर्वाह करते हैंअतः उन्हें भोजनाआदि के लिये आटे की आवश्यकता ही क्या हैं  बाबा तो परम दयालु है  हो सकता है कि यह आटा वे हम सब लोगों में ही वितरण कर दें  इन्हीं विचारों में मगन रहकर गीत गाते-गाते ही उन्होंने सारा आटा पीस डाला  तब उन्होंने चक्की को हटाकर आटे को चार समान भागों में विभक्त कर लिया और अपना-अपना भाग लेकर वहाँ से जाने को उघत हुई  अभी तक शान्त मुद्रा में निमग्न बाब तत्क्षण ही क्रोधित हो उठे और उन्हें अपशब्द कहने लगेसि्त्रयों क्या तुम पागल हो गई हो  तुम किसके बाप का माल हडपकर ले जा रही हो  क्या कोई कर्जदार का माल हैजो इतनी आसानी से उठाकर लिये जा रही हो  अच्छाअब एक कार्य करो कि इस अटे को ले जाकर गाँव की मेंड़ (सीमापर बिखेर आओ 
मैंने शिरडीवासियों से प्रश्न किया कि जो कुछ बाबा ने अभी किया हैउसका यथार्थ में क्या तात्पर्य है  उन्होने मुझे बतलाया कि गाँव में विषूचिका (हैजाका जोरो से प्रकोप है और उसके निवारणार्थ ही बाबा का यह उपचार है  अभी जो कुछ आपने पीसते देखा थावह गेहूँ नहींवरन विषूचिका (हैजाथीजो पीसकर नष्ट-भ्रष्ट कर दी गई है  इस घटना के पश्चात सचमुच विषूचिका की संक्रामतकता शांत हो गई और ग्रामवासी सुखी हो गये 


यह जानकर मेरी प्रसन्नता का पारावार  रहा  मेरा कौतूहल जागृत हो गया  मै स्वयं से प्रश्न करने लगा कि आटे और विषूचिका (हैजारोग का भौतिक तथा पारस्परिक क्या सम्बंध है  इसका सूत्र कैसे ज्ञात हो  घटना बुदिगम्य सी प्रतीत नहीं होती  अपने हृतय की सन्तुष्टि के हेतु इस मधुर लीला का मुझे चार शब्दों में महत्व अवश्य प्रकट करना चाहिये  लीला पर चिन्तन करते हुये मेरा हृदय प्रफुलित हो उठा और इस प्रकार बाब का जीवन-चरित्र लिखने के लिये मुझे प्रेरणा मिली  यह तो सब लोगों को विदित ही है कि यह कार्य बाबा की कृपा और शुभ आशीर्वाद से सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया 
आटा पीसने का तात्पर्य
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शिरडीवासियों ने इस आटा पीसने की घटना का जो अर्थ लगायावह तो प्रायः ठीक ही हैपरन्तु उसके अतिरिक्त मेरे विचार से कोई अन्य भी अर्थ है  बाब शिरड़ी में 60 वर्षों तक रहे और इस दीर्घ काल में उन्होंने आटा पीसने का कार्य प्रायः प्रतिदिन ही किया  पीसने का अभिप्राय गेहूँ से नहींवरन् अपने भक्तों के पापोदुर्भागयोंमानसिक तथा शाशीरिक तापों से था  उनकी चक्की के दो पाटों में ऊपर का पाट भक्ति तथा नीचे का कर्म था  चक्की का मुठिया जिससे कि वे पीसते थेवह था ज्ञान  बाबा का दृढ़ विश्वास था कि जब तक मनुष्य के हृदय से प्रवृत्तियाँआसक्तिघृणा तथा अहंकार नष्ट नहीं हो जातेजिनका नष्ट होना अत्यन्त दुष्कर हैतब तक ज्ञान तथा आत्मानुभूति संभव नहीं हैं 
यह घटना कबीरदास जी की उसके तदनरुप घटना की स्मृति दिलाती है  कबीरदास जी एक स्त्री को अनाज पीसते देखकर अपने गुरू निपतिनिरंजन से कहने लगे कि मैं इसलिये रुदन कर रहा हूँ कि जिस प्रकार अनाज चक्की में पीसा जाता हैउसी प्रकार मैं भी भवसागर रुपी चक्की में पीसे जाने की यातना का अनुभव कर रहा हूँ  उनके गुरु ने उत्तर दिया कि घबड़ाओ नहीचक्की के केन्द्र में जो ज्ञान रुपी दंड हैउसी को दृढ़ता से पकड़ लोजिस प्रकार तुम मुझे करते देख रहे हो  उससे दूर मत जाओबसकेन्द्र की ओप ही अग्रसर होते जाओ और तब यह निशि्चत है कि तुम इस भवसागर रुपी चक्की से अवश्य ही बच जाओगे 




।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु  शुभं भवतु ।।