श्री गुरु तेग बहादर जी – साखियाँ
गुरु वचन मानने में ही सुख
उसने आकर गुरु जी के चरणों पर माथा टेका|उसने यह भी प्रार्थना की कि मेरे घर आकर विश्राम करो| तब तक मैं अपनी खेती कि कूत (मिनती) करा आऊँ| गुरु जी ने उसे कहा कि आप हमारे साथ घर चले|तुम्हारी खेती का गुरु रखवाला है| तुम कूत कराने ना जाओ|
जिमींदार ने वचन को काटते हुए कहा कि महाराज! आप चले जाये, हम शीघ्र ही आ जायेंगे| ऐसा कहता हुआ वह सिख वहाँ से चल दिया|
जब उसके खेत कि कूत हुई तो पहले वह दो सौ विघा थी, अब वह सौ विघा हो गई|उसके शरीको ने कहा कि कूत करने वाला रिश्वत खा गया है|कूत दुबारा होनी चाहिए|जब खेती कि दुबारा कूत हुई तो वह सौ विघा ही निकली|इस बात से उसे गुरु जी पर विश्वास हो गया कि उसे वचन नहीं काटना चाहिए था|उसने गुरु जी के चरणों पर माथा टेका|उसने सारी बात गुरु जी को बताई|
गुरु जी प्रातकाल उठकर स्नान किया और उसे वचन किया कि आज से आप तम्बाकू पीना छोड़ दो व सिक्ख संगतो कि स्सेवा किया करो| तुम्हारा परलोक सुधर जायेगा|तुम्हारा वंश जब तक हुक्के का त्याग करके खेती करेगा तब तक बहुत बढेगा|परन्तु यदि हूका तम्बाकू पीना आरम्भ कर देगा,तो कंगाल हो जायेगा| सारा धन भी जाता रहेगा|गुरु जी का वचन मानकर जिमींदार ने गुरु जी के चरणों पर माथा टेका और हुक्का पीना छोड़ दिया|
भाई संतोख जी लिखते है कि यह हमने अपनी आँखों से देखा कि जब उसकी कुल का एक आदमी हुक्का पीने लगा तो वह अति गरीब हो गया|
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