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शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Tuesday, 8 October 2013

भक्त भीखण जी - जीवन परिचय

ॐ साँई राम जी

आप सभी को नव दुर्गा जी के नवरात्रों की हार्दिक शुभ कामनायें



भक्त भीखण जी

भूमिका:

न्यौछावर जाए शहीदों के सिरताज, ब्रह्म ज्ञानी आप परमेश्वर सतिगुरु अर्जन देव जी के, जिन्होंने हर एक महापुरुष तथा परमेश्वर भक्त का सत्कार किया| हिन्दू मुसलमान के सत्कार के साथ उनका भी आदर सत्कार किया, जिनको ब्रह्मण समाज निम्न समझता था| मनव जाति का सत्कर किया|


परिचय:

भीखण जी मुसलमान फकीर थे| आपका सम्बन्ध सूफियों के साथ था तथा प्रसिद्ध फकीर सैयद पीर इब्राहीम के शिष्य थे| आपका जन्म लखनऊ के गाँव काकोरी में हुआ| आपका समय 15वीं विक्रमी के पूर्व मध्य में हुआ| आप एक महान फकीर व भक्त हुए हैं| 

जब सतिगुरु जी श्री गुरुग्रंथ साहिब की रचना कर रहे थे तो भगत भीखण जी की भी बाणी प्राप्त हुई| इनके दो शब्द गुरुग्रंथ साहिब में भी लिखवाए गए| इनकी बाणी बैराग्य से भरी हुई व कल्याण के मार्ग की ओर ले जाने वाली है| 

मनुष्य के शारीरिक रूप से तीन जन्म होते हैं-

बचपन
किशोरा अवस्था
बुढ़ापा


जीवन की पहली दो अवस्थाए बचपन व किशोरा अवस्था में नेकी की तरफ ध्यान नहीं जाता परन्तु बुराई की ओर ही भागता है| परन्तु जब वह बुजुर्गी की अवस्था में आता है तो पश्चाताप से भार जाता है| आप फरमाते हैं - बुढ़ापा आया आँखों से पानी बहता रहा| शरीर कमजोर हो गया| बाल दूध जैसे सफ़ेद हो गए| बोलने लगता है तो गले में बलगम आ जाती है बोला नहीं जाता| उस समय प्रभु का नाम लेना चाहता है परन्तु नहीं ले पता| वह कहता है हे प्रभु! आप ही वैद बनो मेरा रोग दूर करो| मेरे शरीर में कंपकपी आ गई है|

भक्त खुद ही उत्तर देते हैं ऐसे रोगों की दवा दुनिया के पास नहीं मिलती| इलाज है - हरि नाम, प्रभु का सिमरन करना| परन्तु ऐसा गुरु की कृपा से ही संभव हो सकता है जब मन भक्ति की तरफ लगता है| इसके पश्चात मोक्ष स्वम ही प्राप्त हो जाता है| वास्तव में भक्ति करने का समय सदैव ही होता हो| इसलिए मनुष्य को बचपन से ही भक्ति की तरफ बढ़ना चाहिए| भक्ति ही तो है जो इंसान को निम्न से ऊँचा व श्रेष्ठ बनाती है|


भीखण जी का देहांत 1631 विक्रमी में हुआ माना जाता है|

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