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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Wednesday 18 June 2014

श्री साईं लीलाएं - ब्रह्म ज्ञान पाने का सच्चा अधिकारी

ॐ सांई राम


कल हमने पढ़ा था.. मिस्टर थॉमस नतमस्तक हुए

श्री साईं लीलाएं


ब्रह्म ज्ञान पाने का सच्चा अधिकारी

साईं बाबा की प्रसिद्धि अब बहुत दूर-दूर तक फैल गयी थीशिरडी से बाहर दूर-दूर के लोग भी उनके चमत्कार के विषय में जानकर प्रभावित हुए बिना न रह सके|


वह साईं बाबा के चमत्कारों के बारे में जानकर श्रद्धा से नतमस्तक हो उठते थे|एक पंडितजी को छोड़कर शिरडी में उनका दूसरा कोई विरोधी एवं उनके प्रति अपने मन में ईर्ष्या रखने वाला न थाबाबा के पास अब हर समय भक्तों का जमघट लगा रहता थावह अपने भक्तों को सभी से प्रेम करने के लिए कहते थे|इतनी प्रसिद्धि फैल जाने के बाद भी बाबा का जीवन अब भी पहले जैसा ही थावह भिक्षा मांगकर ही अपना पेट भरते थेरुपयों-पैसों को वह बिल्कुल भी हाथ न लगाते थेश्रद्धालु भक्त अपनी श्रद्धा से जो कुछ दे जाया करते थेउनके शिष्य उनका उपयोग मस्जिद बनाने और गरीबों की सहायता करने में किया करते थे|मस्जिद के एक कोने में बाबा की धूनी सदा रमी रहती थीउसमें हमेशा आग जलती रहती थी और साईं बाबा अपनी धूनी के पास बैठे रहा करते थेबाबा जमीन पर सोया करते थेबाबा सदैव कुर्ताधोती और सिर पर अंगोछा बांधे रहते थे और नंगे पैर रहते थेयही उनकी वेशभूषा थी|अहमदाबाद में एक गुजराती सेठ थेउनके पास बहुत सारी धन-सम्पत्ति थीसभी तरह से वह सम्पन्न थेसाईं बाबा की प्रसिद्धि सुनकर उनके मन में भी बाबा से मिलने की इच्छा पैदा हुई|बाबा से मिलने के पीछे उनके दिल में एक ही वंशा थी - वह मन-ही-मन सोचतेसांसारिक सुखों की तो सभी वस्तुएं मेरे पास मौजूद हैंक्यों न कुछ आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त कर लिया जायेजिससे स्वर्ग की प्राप्ति होवह अपना परलोक भी सुधार लेना चाहते थेइसलिए साईं बाबा से मिलने को अत्यंत उत्सुक थेइसी दौरान एक साधु उसके पास आयेयह भी साईं बाबा के भक्त थेउन्होंने भी उस सेठ को बतायायह सुनकर साईं बाबा से मिलने की इच्छा और भी तीव्र हो गयीउन्होंने साईं बाबा से मिलने का निश्चय किया और शिरडी के लिए रवाना हो गये|जिस दिन वह शिरडी आयेउस दिन बृहस्पतिवार का दिन थाबाबा के प्रसाद का दिनसेठ की सवारी जब द्वारिकामाई मस्जिद के पास आकर रुकीउस समय लोगों की वहां पर अपार भीड़ जमा थी|बृहस्पतिवार को शिरडी गांव के ही नहींबल्कि दूर-दूर के अनेक गांव के लोग भी साईं बाबा की शोभायात्रा में शामिल होने के लिए द्वारिकामाई मस्जिद आते थेबाबा की शोभायात्रा निकाली जाती थीजो द्वारिकामाई मस्जिद से चावड़ी तक जाती थीसाईं बाबा के भक्त झांझमदृंगढोलमंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजातेभक्ति गीत तथा कीर्तन गाते हुए सबसे आगे-आगे चलते थेइस जलूस में महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हुआ करती थींउनके पीछे दर्जनों सजी हुई पालकियां होती थीं और सबसे आखिर में विशेष रूप से एक सजी हुई पालकी होती थीजिसमें साईं बाबा बैठते थेबाबा के शिष्य पालकी को अपने कंधों पर उठाकर चलते थेपालकी के दोनों ओर जलती हुई मशालें लेकर मशालची चला करते थे|जुलूस के आगे-आगे आतिशबाजी छोड़ी जाती थीसारा गांव साईं बाबा की जयभजन तथा कीर्तन की मधुर ध्वनि से गुंजायमान हो उठता थाचावड़ी तक यह जुलूस जाकर फिर इसी तरह से द्वारिकामाई मस्जिद की ओर लौट आता थाजब पालकी मस्जिद के सामने पहुंच जाती थीमस्जिद की सीढ़ियों पर खड़ा हुआ शिष्य बाबा के आगमन की घोषणा करता थाबाबा के सिर पर छत्र तान दिया जाता थामस्जिद की सीढ़ियों पर दोनों ओर खड़े लोग चँवर डुलाने लगते थेरास्ते में फूलगुलाल और कुमकुम आदि बरसाये जाते थे|साईं बाबा हाथ उठाकर वहां एकत्रित भीड़ को अपना आशीर्वाद देते हुए धीरे-धीरे चलते हुए अपनी धूनी पर पहुंच जाते थेसारे रास्ते भर 'साईं बाबा की जयका नारा गूंजा करता थाजुलूस के दिन शिरडी के गांव की शोभा देखते ही बनती थीहिन्दू-मुसलमान सभी मिलकर साईं बाबा का गुणगान करते थे|साईं बाबा की शोभायात्रा को देखकर गुजराती सेठ चकित रह गयावह बाबा के पीछे-पीछे चलते हुए अन्य भक्तों के साथ चलते हुए बाबा की धूनी तक आ गया|उन्होंने बाबा के चेहरे की ओर देखाकुछ देर पहले ही बाबा का जुलूस राजसी शानो-शौकत से निकाला गया थालेकिन बाबा के चेहरे पर किसी प्रकार के अहंकार या गर्व की झलक तक नहीं थीउनके चेहरे पर सदा की तरह शिशु जैसा भोलापन छाया हुआ थागुजराती सेठ साईं बाबा के चरणों में झुक गयाबाबा ने उन्हें बड़े स्नेह से उठाकर अपने पास बैठा लिया|गुजराती सेठ ने हाथ जोड़कर कातर स्वर में कहा - "बाबा ! परमात्मा की कृपा से मेरे पास सब कुछ हैधन-सम्पतिजायदादसंतान सब कुछ हैसंसार के सभी मुझे प्राप्त हैंआपके आशीर्वाद से मुझे किसी प्रकार का अभाव नहीं है|"सेठ की बात सुनने के बाद बाबा ने हँसते हुए कहा - "फिर आप मेरे पास क्या लेने आए हैं ?"


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बाबामेरा मन सांसारिक सुखों से ऊब गया हैमैंने धनोपार्जन करके अपने इस लोक को सुखी बना दिया हैअब मैं आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर अपना परलोक भी सुधार लेना चाहता हूं|"

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सेठजीआपके विचार बहुत सुंदर हैंमेरे पास जो कोई भी आता हैमैं यथासंभव उसकी मदद करता हूं|"साईं बाबा की बात सुनकर सेठ को अत्यंत प्रसन्नता हुईउसे विश्वास हो चला था कि साईं बाबा उसे अवश्य ही ज्ञान प्रदान करेंगेजिस विश्वास को लेकर वह यहां आया हैवह अवश्य ही यहां पर पूरा होगावहां का वातावरण देखकर वह और प्रसन्न हो गया था|गुजराती सेठ बेफिक्र हो गया था उसे पूरा-पूरा विश्वास हो गया था कि उसका उद्देश्य पूरा हो जाएगा|अचानक साईं बाबा ने अपने एक शिष्य को अपने पास बुलाया और उससे बोले - " एक छोटा-सा काम कर दोअभी जाकर धनजी सेठ से सौ रुपये मांग लाओ|"वह शिष्य हैरानी से साईं बाबा के मुख की ओर देखता रह गयाबाबा को शिरडी में आए हुए इतने वर्ष बीत गए थेलेकिन उन्होंने आज तक कभी पैसे को हाथ भी न लगाया थाभक्त और शिष्य उन्हें जो कुछ भेंट दे जाते थेवह सब उनके दूसरे प्रमुख शिष्यों के पास ही रहता थाउनके आसन के नीचे पांच-दस रुपये अवश्य रख दिये जाते थेवह इसलिए कि यदि बाबा प्रसन्न होकर अपने भक्त को कुछ देना चाहेंतो दे देंबाबा जब कभी-कभार किसी भक्त पर प्रसन्न होते थेतो अपने आसन के नीचे से निकालकर दो-चार रुपये दे दिया करते थेआज बाबा को अचानक इतने रुपयों की क्या आवश्यकता पड़ गयी शिष्य इसी सोच में डूबा हुआ धनजी सेठ के पास चला गया|कुछ देर बाद उसने लौटकर बताया कि धनजी सेठ तो पिछले दो दिन से बम्बई (मुम्बई) गए हुए हैं|

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कोई बात नहींतुम बड़े भाई के पास चले जाओवह तुम्हें सौ रुपये दे देंगे|"हैरान-परेशान-सा वह फिर से चला गया|तभी बृहस्पतिवार को होने सामूहिक भोजन का कार्यक्रम शुरू हो गयाउस दिन जितने भी लोग शोभायात्रा में शामिल हुआ करते थे वह सभी मस्जिद में ही खाना खाया करते थेजात-पातऊंच-नीच छुआ-छूत की भावना का त्याग करके सभी लोग एक साथ बैठकर बाबा के भंडारे का प्रसाद पूरी श्रद्धा के साथ ग्रहण किया करते थे|साईं बाबा ने उस गुजराती सेठ से कहा - "सेठजीआप भी प्रसाद ग्रहण कीजिए|"

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मैं तो भोजन कर चूका हूं बाबा ! खाने की मेरी इच्छा नहीं हैआप मुझे ज्ञान दीजिएमेरे लिए यही आपका सबसे बड़ा प्रसाद होगा|" सेठ ने हाथ जोड़कर कहा|तभी शिष्य सेठ की दूकान से वापस लौट आयाउसने बताया कि सेठ का भाई भी अपने किसी संबंधी के यहां गया हुआ हैदो-तीन दिन बाद लौटेगा|

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कोई बात नहींतुम जाओ|" साईं बाबा ने एक लंबी सांस लेकर कहा|शिष्य की परेशानी की कोई सीमा न थीउसकी समझ में नहीं आ रहा था कि साईं बाबा को अचानक इतने रुपयों की क्या आवश्यकता पड़ गयी साईं बाबा उठकर मस्जिद के चबूतरे के पास चले गएजहां शोभायात्रा से आए हुए लोग प्रसाद ग्रहण कर रहे थे|बाबा चबूतरे के पास ही एक टूटी दीवार पर जा बैठे और अपने शिष्यों तथा भक्तों को देखने लगेइस समय उनके चेहरे पर ठीक वैसी ही प्रसन्नता के भाव थेजैसे किसी पिता के चेहरे पर उस समय होते हैंजब वह अपनी संतान को भोजन करते हुए देखता हैगुजराती सेठ साईं बाबा के पास खड़ा कार्यक्रम को देखता रहाकुछ देर बाद जब बाबा अपने आसन पर आकर बैठ गए तो गुजराती सेठ ने फिर से अपनी प्रार्थना दोहरायी|बाबा इस बात पर खिलखिलाकर हँस पड़ेहँसने के बाद उन्होंने गुजराती सेठ की ओर देखते हुए पूछा - "सेठजीक्या आपने यह सोचा है कि आप ज्ञान प्राप्त करने के योग्य हैं भी अथवा नहीं ?"

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मैं कुछ समझा नहीं|" सेठ बोला|

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देखो सेठजी ! ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी वह व्यक्ति होता हैजिसके मन में कोई मोह न होसांसारिक विषय वस्तुओं के लिए लालसा न होत्याग की भावना हो और जो संसार के प्रत्येक प्राणी को चाहे वह मनुष्य होपशु हो या कीट-पतंग सभी को अपने समान समझकर समान भाव से प्यार करता हो|"

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आप बिल्कुल ठीक कहते हैं|" गुजराती सेठ बोला|

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नहीं सेठतुम झूठ बोलते होतुम्हारे मन में सारी बुराइयां अभी भी मौजूद हैंयदि तुम्हारे मन में धन के प्रति आसक्ति न होती और कुछ त्याग की भावना होतीतो जब मैंने अपने शिष्य को दो बार रुपये लाने के लिए भेजा था और वह दोनों बार खाली हाथ लौटकर आया थातब तुम अपनी जेब से भी निकालकर रुपये दे सकते थेजबकि तुम्हारी जेब में सौ-सौ के नोट रखे हुए थेपर तुमने यह सोचा कि मैं सौ रुपये बाबा को मुफ्त में क्यों दूं मैंने तुमसे भण्डारे में प्रसाद ग्रहण करने के लिए कहातो तुमने प्रसाद ग्रहण करने से तुरंत इंकार कर दियाक्योंकि वहां सभी जातियों और धर्मों के लोग एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण कर रहे थेइसलिए तुम किसी भी दशा में ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हो|जिस व्यक्ति के मन में लोभ नहीं होता हैजिसकी दृष्टि में समभाव होता हैउसे स्वयं ही ज्ञान प्राप्त हो जाता हैतुम ज्ञान पाने के अधिकारी तभी हो सकते होजब तुम में यह बातें पैदा हो जायेंगी|"गुजराती सेठ को ऐसा लगा जैसे बाबा ने उसकी आत्मा को झिंझोड़कर रख दिया होउसका चेहरा उतर गया|साईं बाबा ने सेठ को वापस चले जाने के लिए कह दियावह चुपचाप उठा और बाबा के चरण स्पर्श करके वापस चल दियाउसके पास अब कहने को कुछ नहीं बचा था
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परसों चर्चा करेंगे..तात्या को बाबा का आशीर्वाद


ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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