ॐ सांई राम
साईं वाणी भाग (7)
ऐसे मन जब होवे लीन, जल में प्यासी रहे न मीन ।
चित चढ़े एक रंग अनूप, चेतन हो जाये साईं स्वरूप ।।
जिसमें साईं नाम शुभ जागे, उसके पाप ताप सब भागें ।
मन में साईं नाम जो उचारे, उस के भागें भ्रम भय सारे ।।
सुख-दुःख तेरी देन हैं, सुख-दुःख में तू आप ।
रोम-रोम में हैं साईं, तू ही रहयो व्याप ।।
जय जय साईं सच्चिदानन्द, मुरली मनोहर परमानन्द ।
परब्रहम परमेश्वर गोविंदा, निर्मल पावन ज्योत अखण्ड ।।
एकई ने सब खेल रचाया, जो देखो वो सब है माया ।
एको एक है भगवान, दो को तू ही माया जान ।।
बाहर भ्रम भूलेई संसार, अन्दर प्रीतम साईं अपार ।
जा को आप बजाहे भगवंत, सो ही जाने साईं अनन्त ।।
जिस में बस जाए साईं सुनाम, होवे वह जैम पूरण काम ।
चित में साईं नाम जो सिमरे, निश्चय भवसागर से तरे ।।
साईं सुमिरन होवे सहाई, साईं सुमिरन है सुखदायी ।
साईं सुमिरन सबसे ऊँचा, साईं शक्ति गुण ज्ञान समूचा ।।
सुख दाता आपद हरण, साईं गरीब निवाज ।
अपने बच्चों के साईं, सभी सुधारे काज ।।
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं===
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