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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Saturday, 7 December 2013

योग और प्याज

ॐ सांई राम


योग और प्याज

एक समय एक योगाभ्यासी नाना साहेब चांदोरकर के साथ शिर्डी आया. उसने पतंजलि योगसूत्र तथा योगशास्त्र के अन्य ग्रंथों का विशेष अध्यन किया था, परन्तु वह व्यावहारिक अनुभव से वंचित था. मन एकाग्र ना हो सकने के कारण वह थोड़े समय के लिए भी समाधी नहीं लगा सकता था. यदि सैबबा कि कृपा प्राप्त हो जाये तो उनसे थोड़ी अधिक समय तक समाधी अवस्था प्राप्त करने कि विधि ज्ञात हो जाएगी, इस विचार से वह शिर्डी आया और जब मस्जिद में पहुंचा तो साईं बाबा को प्याज सहित सूखी रोटी खाते देख कर उसे विचार आया कि यह कच्ची प्याजसहित सूखी रोटी खाने वाला व्यक्ति मेरी कठिनाई को किस प्रकार हल कर पायेगा? साईं बाबा अंतर्ज्ञान से उसका विचार जानकार तुरंत नानासाहेब से बोले कि " ओ नाना ! जिसमे प्याज हजम करने कि शक्ति है , उसको ही उसे खाना चाहिए, अन्य को नहीं." इन शब्दों से अत्यंत विस्मित होकर योगी ने साईं चरणों में पूर्ण आत्मसमर्पण कर दिया. शुद्ध और निष्कपट भाव से अपनी कठिनाइयाँ बाबा के समक्ष प्रस्तुत करके उनसे उनका हल प्राप्त किया, और इस प्रकार संतुष्ट और सुखी होकर बाबा के दर्शन और उदी लेकर वह शिर्डी से चला गया................. ॐ साईं राम



श्री सांई सच्चरित्र क्या कहती है ??

यूँ ही एक दिन चलते-चलते

सांई से हो गई मुलाकात।

जब अचानक सांई सच्चरित्र की

पाई एक सौगात।

फिर सांई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार।

तब सांई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार।

सांई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला।

सांई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला।

घर में गूँजने लगी हर वक्त सांई गान की धुन।

मन के तार झूमने लगे सांई धुन को सुन।

धीरे-धीरे सांई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा।

और सांई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा।

सांई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगा फिदा।

अब मेरे सांई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा।

हर घङी मिलता रहे मुझे सांई का संतसंग।

सांई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग।

सांई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश।

सांई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश।

भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार।

सांई ज्ञान की जीवन में बहती रहे ब्यार॥

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