मैली चादर ओड़ के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ
हे पावन परमेश्वर मेरे
मन ही मन शरमाऊँ
[मैली चादर ओड़ के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
तुने मुझको जग में भेजा
निर्मल दे कर काया
इस संसार में आकार मैंने
इसको दाग लगाया
जनम जनम की मैली चादर
कैसे दाग छुडाऊँ
[मैली चादर ओड़ के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
निर्मल वाणी पाकर तुझसे
नाम न तेरा गाया
नैन मूंदकर हे परमेश्वर
कभी ना तुझको ध्याया
मन वीणा की तारें टूटी
अब क्या गीत सुनाऊँ
[मैली चादर ओड़ के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
इन पैरों से चल कर तेरे
मंदिर कभी ना आया
जहां जहां हो पूजा तेरी
कभी ना शीश झुकाया
हे हरिहर मैं हार के आया
अब क्या हार चढाऊँ
[मैली चादर ओड़ के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
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