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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Wednesday, 4 June 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीरामभक्त विभीषण

ॐ श्री साँईं राम जी


महर्षि विश्रवाको असुर कन्या कैकसीके संयोगसे तीन पुत्र हुए - रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण| विभीषण विश्रवाके सबसे छोटे पुत्र थे|बचपनसे ही इनकी धर्माचरणमें रुचि थी| ये भगवान् के परम भक्त थे| तीनों भाइयोंने बहुत दिनोंतक कठोर तपस्या करके श्रीब्रह्माजीको प्रसन्न किया| ब्रह्माने प्रकट होकर तीनोंसे वर माँगनेके लिये कहा - रावणने अपने महत्त्वाकांक्षी स्वभावके अनुसार श्रीब्रह्माजीसे त्रैलोक्य विजयी होनेका वरदान माँगा, कुम्भकर्णने छ: महीनेकी नींद माँगी और विभीषणने उनसे भगवद्भक्तिकी याचना की| सबको यथायोग्य वरदान देकर श्रीब्रह्माजी अपने लोक पधारे| तपस्यासे लौटनेके बाद रावणने अपने सौतेले भाई कुबेरसे सोनेकी लंकापूरीको छीनकर उसे अपनी राजधानी बनाया और ब्रह्माके वरदानके प्रभावसे त्रैलोक्य विजयी बना| ब्रह्माजीकी सृष्टिमें जितने भी शरीरधारी प्राणी थे, सभी रावणके वशमें हो गये| विभीषण भी रावणके साथ लंकामें रहने लगे|

रावणने जब सीताजीका हरण किया, तब विभीषणने परायी स्त्रीके हरणको महापाप बताते हुए सीताजीको श्रीरामको लौटा देनेकी उसे सलाह दी| किन्तु रावणने उसपर कोई ध्यान न दिया| श्रीहनुमान् जी सीताकी खोज करते हुए लंकामें आये| उन्होंने श्रीरामनामसे अंकित विभीषणका घर देखा| घरके चारों ओर तुलसीके वृक्ष लगे हुए थे| सूर्योदयके पूर्वका समय था, उसी समय श्रीराम-नामका स्मरण करते हुए विभीषणजी की निद्रा भंग हुई| राक्षसोंके नगरमें श्रीरामभक्तको देखकर हनुमान् जीको आश्चर्य हुआ| दो रामभक्तोंका परस्पर मिलन हुआ| श्रीहनुमान् जीका दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गये| उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रीरामदूतके रूप में श्रीरामने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है| श्रीहनुमान् जी ने उनसे पता पूछकर अशोकवाटिकामें माता सीताका दर्शन किया| अशोकवाटिका-विध्वंस और अक्षयकुमारके वधके अपराधमें रावण हनुमान् जी को प्राणदण्ड देना चाहता था| उस समय विभीषणने ही उसे दूतको अवध्य बताकर हनुमान् जी को कोई और दण्ड देनेकी सलाह दी| रावणने हनुमान् जी की पूँछमें आग लगानेकी आज्ञा दी और विभीषणके मन्दिरको छोड़कर सम्पूर्ण लंका जलकर राख हो गयी|

भगवान् श्रीरामने लंकापर चढ़ायी कर दी| विभीषणने पुन: सीताको वापस करके युद्धकी विभीषणको रोकनेकि रावणसे प्रार्थना की| इसपर रावणने इन्हें लात मारकर निकाल दिया| ये श्रीरामके शरणागत हुए| रावण सपरिवार मारा गया| भगवान् श्रीरामने विभीषणको लंकाका नरेश बनाया और अजर-अमर होने का वरदान दिया| विभीषणजी सप्त चिरंजीवियों एक हैं और अभीतक विद्यमान हैं|

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