ॐ साईं राम
गुरु की आवश्यकता
हमे अपनी जीवन में गुरु की आवश्यकता क्यों पड़ती है इसका उत्तर स्वयं बाबा जी ने इस प्रकार दिया था
बाबा से भेंट करने के दूसरे दिन हेमाडपंत और काकासाहेब ने मसजिद में जाकर गृह लौटने की अनुमति माँगी । बाबा ने स्वीकृति दे दी ।
किसी ने बाबाजी से प्रशन किया – बाबा, कहाँ जायें ।
उत्तर मिला – ऊपर जाओ ।
प्रशन – मार्ग कैसा है ।
बाबा – अनेक पंथ है । यहाँ से भी एक मार्ग है । परंतु यह मार्ग दुर्गम है तथा सिंह और भेड़िये भी मिलते है ।
काकासाहेब – यदि पथ प्रदर्शक भी साथ हो तो ।
बाबा – तब कोई कष्ट न होगा । मार्ग-प्रदर्शक तुम्हारी सिंह और भेड़िये और खन्दकों से रक्षा कर तुम्हें सीधे निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा देगा । परंतु उसके अभाव में जंगल में मार्ग भूलने या गड्रढे में गिर जाने की सम्भावना है । दाभोलकर भी उपर्युक्त प्रसंग के अवसर पर वहाँ उपस्थित थे । उन्होंने सोचा कि जो कुछ बाबा कह रहे है, वह गुरु की आवश्यकता क्यों है । प्रत्युत इसके विपरीत यथार्थ में परमार्थ-लाभ केवल गुरु के उपदेश में किया गया है, जिसमें लिखा है कि राम और कृष्ण महान् अवतारी होते हुए भी आत्मानुभूति के लिये राम को अपने गुरु वसिष्ठ और कृष्ण को अपने गुरु सांदीपनि की शरण में जाना पड़ा था । इस मार्ग में उन्नति प्राप्त करने के लिये केवल श्रधा और धैर्य-ये ही दो गुण सहायक हैं ।
यदि हम अपने जीवन (खुदको) गुरु को समर्पण कर देते है तो गुरु हमे हर कठिनाइयों से बच्चाते है और हर कदम पैर हमें सही राह दिखाते है, बिना गुरु के जीवन व्यर्थ है, सिर्फ मानव योनी ही है जिसमे हम गुरु को पा सकते है और किसी योनी में हम गुरु का साथ नहीं पा सकते इसीलिए अपने मानव जीवन को व्यर्थ न करके इसे (खुदको) गुरु के चरणों समर्पित कर देना चाहिए और अपने गुरु के वचनों का पालन करना चाहिए!
आप सभी को साईं वार की हार्दिक शुभ कामनाये!
साईं कृपा सदा हम सब पर बनी रहे!
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