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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Monday, 11 March 2013

श्री साईं लीलाएं- रामनवमी के दिन शिरडी का मेला

ॐ सांई राम

कल हमने पढ़ा था.. श्री साईं विट्ठल का दर्शन देना     


श्री साईं लीलाएं






रामनवमी के दिन शिरडी का मेला
    

साईं बाबा के एक भक्त कोपर गांव में रहते थे, उनका नाम गोपालराव गुंड था| उन्होंने संतान न होने के कारण तीन-तीन विवाह किये, फिर भी उन्हें संतान सुख प्राप्त न हुआ| अपनी साईं भक्ति के परिणामस्वरूप उन्हें साईं बाबा के आशीर्वाद से एक पुत्र संतान की प्राप्ति हुई| पुत्र संतान पाकर उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा|

गोपालराव गुंड को सन् 1897 में पुत्र की प्राप्ति हुई थी| पुत्र-प्राप्ति की खुशी में उनके मन में यह विचार आया कि शिरडी में उन्हें कोई मेला या उर्स अवश्य लगवाना चाहिए| अपने इस विचार के बारे में उन्होंने शिरडी में रहने वाले साईं भक्त तात्या पाटिल, दादा कोते पाटिल, माधवराज आदि से मिलकर उन्हें अपने विचारों से अगवत कराया| उन सभी को यह विचार बड़ा पसंद आया| फिर उन्हें इस बारे में साईं बाबा की अनुमति और आश्वासन भी मिल गया| लेकिन मेला लगाने के लिए सरकारी अनुमति प्राप्त करना भी आवश्यक था| फिर इसके लिए एक पत्र कलेक्टर को भेजा गया, परन्तु गांव के पटवारी ने उस पर अपनी आपत्ति जता दी, इसलिए अनुमति नहीं मिल सकी|

इसके बारे में साईं बाबा की अनुमति पहले ही प्राप्त हो चुकी थी| अत: इसके बारे में एक बार फिर से कोशिश की गयी| इस बार सरकारी अनुमति बिना किसी परेशानी के मिल गयी| इस तरह से साईं बाबा की आज्ञा से रामनवमी वाले दिन उर्स भरने का निर्णय हुआ| रामनवमी के दिन उर्स भरना हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक था| यह अद्देश्य पूर्ण रूप से सफल रहा| इस अवसर पर कच्ची दुकानें बनाई गईं और कुश्तियां भी आयोजित की गईं| रामनवमी वाले दिन साईं बाबा का पूजन, भजन, गायन, वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि के साथ ध्वजों को लहराते हुए संचालन किया गया| उस दिन शिरडी में सभी दिशाओं से तीर्थयात्रा इस उत्सव को मनाने के लिए शिरडी में आये|

गोपालराव गुंड के एक मित्र घमूअण्णा कासार जो अहमदनगर में रहा करते थे, वे भी नि:संतान थे| उन्हें भी साईं बाबा के आशीर्वाद से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी| इसलिए गोपालराव ने उनसे भी उर्स के लिए एक ध्वज देने को कहा| एक अन्य ध्वज जागीरदार नाना साहब निमोलकर ने दिया| दोनों ध्वजों को बड़े धूमधाम के साथ पूरे गांव से निकालने के बाद मस्जिद तक पहुंचा दिया गया| फिर उन्हें मस्जिद के दोनों कोनों पर फहरा दिया गया| तब से लेकर यह परम्परा आज तक उसी तरह से चली आ रही है| सन् 1911 से इस मेले में राम-जन्म का उत्सव भी मनाया जाने लगा है|


कल चर्चा करेंगे..मस्जिद का पुनः निर्माण और बाबा का गुस्सा  



ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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