श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ
सनमुख व बेमुख की परिभाषा
इस प्रकार जो मनुष्य इस आज्ञा का पालन करता है जिसमे शारीरिक शुद्धता के लिए स्नान करना व मन की शुद्धता के लिए नाम जपना और शारीरिक आरोग्यता के लिए भूखे नंगे को यथा शक्ति दान करता है वाही सनमुख होता है| वही गुरु की आज्ञा में रहने वाला गुरु सिख होता है| ऐसा मनुष्य सदैव सुखी रहता है तथा दुख उसके नजदीक नहीं आता|
गुरु जी मनमुख भाव बेमुख की बात करने लगे कि वह पुरुष जो सदा माया के व्यवहार में ही लगा रहता है| अपने मालिक प्रभु की ओर ध्यान नहीं देता और सारा समय मोह-माया में ही व्यतीत कर देता है| ऐसा पुरुष सदैव दुखी रहता है| वह कभी भी सुख को प्राप्त नहीं कर पाता| इस प्रकार गुरूजी नी सनमुख व बेमुख की परिभाषा समुंदे को समझाई|
बाला और कुष्णा पंडित को मन शांति का उपदेश
बाला और कुष्णा पंडित लोगों को सुन्दर कथा करके खुश किया करते थे और सबके मन को शांति प्रदान करते थे| एक दिन वे गुरु अर्जन देव जी के दरबार में उपस्थित हो गए और प्रार्थना करने लगे कि महाराज! हमारे मन में शांति नहीं है| आप बताएँ हमें शांति किस प्रकार प्राप्त होगी हमें इसका कोई उपाय बताए?
गुरु जी कहने लगे अगर आप मन की शांति चाहते हो तो जैसे आप लोगों को कहते हो उसी प्रकार आप भी उस कथनी पर अमल किया करो| परमात्मा को अंग-संग जानकर उसे याद रखा करो| अगर आप धन इक्कठा करने की लालसा से कथा करोगे तो मन को शांति कदापि प्राप्त नहीं होगी| मन की लालसा बढती जायेगी और आप दुखी होते रहेंगे| इस प्रकार आप निष्काम भाव से कथा किया करे जिससे आपके मन को शांति प्राप्त होगी|
No comments:
Post a Comment