ॐ साईं राम
श्रीमती खापर्डे (अमरावती के श्री
दादासाहेब खापर्डे की धर्मपत्नी) अपने छोटे पुत्र के साथ कई दिनों से
शिरडी में थी । पुत्र तीव्र ज्वर से पीड़ित था, पश्चात उसे प्लेग की
गिल्टी (गाँठ) भी निकल आई । श्रीमती खापर्डे भयभीत हो बहुत घबराने लगी और
अमरावती लौट जाने का विचार करने लगी । संध्या-समय जब बाबा वायुसेवन के लिए
वाड़े (अब जो समाधि मंदिर कहा जाता है) के पास से जा रहे थे, तब उन्होंने
उनसे लौटने की अनुमति माँगी तथा कम्पित स्वर में कहने लगी कि मेरा प्रिय
पुत्र प्लेग से ग्रस्त हो गया है, अतः अब मैं घर लौटना चाहती हूँ ।
प्रेमपूर्वक उनका समाधान करते हुए बाबा ने कहा, आकाश में बहुत बादल छाये
हुए हैं । उनके हटते ही आकाश पूर्ववत् स्वच्छ हो जायेगा । ऐसा कहते हुए
उन्होंने कमर तक अपनी कफनी ऊपर उठाई और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को चार
अंडों के बराबर गिल्टियाँ दिखा कर कहा, देखो, मुझे अपने भक्तों के लिये
कितना कष्ट उठाना पड़ता हैं । उनके कष्ट मेरे हैं । यह विचित्र और असाधारण
लीला दिखकर लोगों को विश्वास हो गया कि सन्तों को अपने भक्तों के लिये किस
प्रकार कष्ट सहन करने पड़ते हैं । संतों का हृदय मोम से भी नरम तथा
अन्तर्बाहृ मक्खन जैसा कोमल होता है । वे अकारण ही भक्तों से प्रेम करते और
उन्हे अपना निजी सम्बंधी समझते हैं ।
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