ॐ सांई राम
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श्री साईं-कथा आराधना (भाग - 9 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
कभी कृष्ण बन कर रिझाते थे साईं,
कभी घुंघरू बांध नाचते थे साईं
कभी उन्होंने चंडी का रूप धर लिया,
कभी शिव भोला बन जाते थे साईंश्री साईं बाबा सदा आत्मलीन रहते थे
सुखों की कभी न कोई चाह करते थे
उनके लिए अमीर-गरीब एक समान थे
बाबा हर भक्त का रखते ध्यान थे
वे सदा एक आसन पर बैठे रहते थे
भक्तों के कल्याण में ही लगे रहते थे
अल्लाह मालिक सदा ही उनके होठों पे रहता
वो संत पूर्ण ब्रह्मज्ञानी प्रतीत-सा होता
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
श्री साईं खुद को मालिक का दास कहते थे,
भक्तों की सारी विपदाएं अपने ऊपर लेते थे
बाबा दया के सागर थे और धाम करुणा के,
वो ही हरते थे दुःख सारे जग के
जिनके हृदय में बस गए श्री साईंनाथा,
उनका कोई अमंगल करने ना पाता
कांशीराम नाम का एक साईं भक्त था
वो बाबा को हमेशा ही दक्षिणा देता था
बाबा उन पैसों को औरों को बांटते
दक्षिणा ले के दान का सही मर्म बताते
कांशीराम के दिल में एक दिन बात ये आई
मेरा ही धन औरों में बांटने से इनकी कौन बड़ाई
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
श्री साईं-कथा आराधना (भाग - 9 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
कभी कृष्ण बन कर रिझाते थे साईं,
कभी घुंघरू बांध नाचते थे साईं
कभी उन्होंने चंडी का रूप धर लिया,
कभी शिव भोला बन जाते थे साईंश्री साईं बाबा सदा आत्मलीन रहते थे
सुखों की कभी न कोई चाह करते थे
उनके लिए अमीर-गरीब एक समान थे
बाबा हर भक्त का रखते ध्यान थे
वे सदा एक आसन पर बैठे रहते थे
भक्तों के कल्याण में ही लगे रहते थे
अल्लाह मालिक सदा ही उनके होठों पे रहता
वो संत पूर्ण ब्रह्मज्ञानी प्रतीत-सा होता
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
श्री साईं खुद को मालिक का दास कहते थे,
भक्तों की सारी विपदाएं अपने ऊपर लेते थे
बाबा दया के सागर थे और धाम करुणा के,
वो ही हरते थे दुःख सारे जग के
जिनके हृदय में बस गए श्री साईंनाथा,
उनका कोई अमंगल करने ना पाता
कांशीराम नाम का एक साईं भक्त था
वो बाबा को हमेशा ही दक्षिणा देता था
बाबा उन पैसों को औरों को बांटते
दक्षिणा ले के दान का सही मर्म बताते
कांशीराम के दिल में एक दिन बात ये आई
मेरा ही धन औरों में बांटने से इनकी कौन बड़ाई
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
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