ॐ श्री साँईं राम जी
तुम्हारे करम से ही देखा है साईं
सदा ही जहाँ में ऐसा नज़ारा
तुम्हारी इबादत से बदलती है किस्मत
तुम्हारी पनाहों में मिलता किनारा
तुम्हारे करम से ही देखा है साईं....
रखे जो भी मन में श्रद्धा सबूरी
कमी उसके घर में आती नहीं है
हस्ती को अपनी मिटा ले अगर तो
कभी मौत उसको रुलाती नहीं है
उलझी है जिसकी कश्ती भंवर में
तुमने ही उसको दिया है किनारा
तुम्हारे करम से ही देखा है साईं....
जिसका नहीं कोई सारे जहाँ में
उसके हो मालिक तुम्हीं साईं बाबा
जिसके ज़हन में साईं तुम बसे हो
ग़म उसके सारे तुम्हारे हैं बाबा
पकड़ी है तुमने ग़र डोर जिसकी
जीवन की राहों में कभी न वो हारा
तुम्हारे करम से ही देखा है साईं....
जहाँ में न देखा है कोई ऐसा
कोढ़ी को जिसने गले से लगाया
हिन्दू मुसल्माँ, सभी के हो मालिक
सभी को तो तुमने अपना बनाया
शिर्डी में बस के , सारे जहां को
मोहब्बत का तुमने कलमा पढ़ाया
तुम्हारे करम से ही देखा है साईं....
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