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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Wednesday, 2 July 2014

श्री साईं लीलाएं - संकटहरण श्री साईं

ॐ सांई राम





कल हमने पढ़ा था.. ऊदी के चमत्कार से पुत्र-प्राप्ति

श्री साईं लीलाएं



संकटहरण श्री साईं
शाम का समय था
उस समय रावजी के दरवाजे पर धूमधाम थीसारा घर तोरन और बंदनवारों से खूब अच्छी तरह से सजा हुआ थाबारात का स्वागत करने के लिए उनके दरवाजे पर सगे-संबंधी और गांव के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थेआज रावजी की बेटी का विवाह थाबारात आने ही वाली थी|

कुछ देर बाद ढोल-बाजों की आवाज सुनायी देने लगीजो बारात के आगमन की सूचक थी|

"
बारात आ गई|" भीड़ में शोर मचा|



थोड़ी देर बाद बारात रावजी के दरवाजे पर आ गयीरावजी ने सगे-सम्बंधियों और सहयोगियों के साथ बारात का गर्मजोशी से स्वागत कियाबारातियों का पानफूलइत्रमालाओं आदि से स्वागत-सत्कार किया गयाफिर बारातियों को भोजन कराया गयासभी ने रावजी के स्वागत और भोजन की प्रशंसा कीफेरे पड़ने का समय हो गया|

"वर को भांवरों के लिए भेजिये|" वर के पिता से रावजी ने निवेदन किया|

"वर भेज दूं ! पहलेदहेज दिखाओभाँवरें तो दहेज के बाद ही पड़ेंगी|" वर के पिता ने कहा|
रावजी बोले - " तो फिर चलियेपहले दहेज देख लीजिए|" रावजी के सगे-सम्बंधियों ने वर के पिता की बात को मान लियावर का पिता अपने सगे-सम्बंधियों के साथ रावजी के आँगन में आयाआँगन में एक ओर चारपाइयों पर दहेज में दी जाने वाली समस्त चीजें रखी हुई थीं|
वर के पिता ने एक-एक करके दहेज की सारी चीजें देखींफिर नाक-भौंह सिकोड़कर बोला - "बसयही है दहेजऐसा दहेज तो हमारे यहां नाईकहारों जैसी छोटी जाति वालों की लड़कों की शादी में आता है|रावजीआप दहेज दे रहे हैं या मेरे और अपने रिश्तेदारों तथा गांव वालों के बीच मेरी बेइज्जती कर रहे होमैं यह शादी कभी नहीं रोने दूंगा|"
रावजी के पैरों तले से धरती खिसक गयीउन्हें ऐसा लगा जैसे आकाश टूटकर उनके सिर पर आ गिरा होयदि लड़की की शादी नहीं हुई और बारात दरवाजे से लौट गयी तो वह समाज में किसी को भी मुंह न दिखा सकेंगेलड़की के लिए दूसरा दूल्हा मिलना असंभव हो जाएगाकोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार न होगा कि दहेज का लालची दूल्हे का पिता दहेज के लालच में बारात वापस ले गयासब यही कहेंगे कि लड़की में ही कोई कमी थीतभी तो बारात आकर दरवाजे से लौट गयी|
रावजी ने वर के पिता के पैर पकड़ लिये और अपनी पगड़ी उतारकर उसके पैरों पर डालकर गिड़गिड़ाते हुए बोले - "मुझ पर दया कीजिए समधी जी ! यदि आप बारात वापस ले गए तो मैं जीते-जी मर जाऊंगामेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो जायेगीवह जीते-जी मर जायेगीमैं बहुत गरीब आदमी हूंजो कुछ भी दहेज अपनी हैसियत के मुताबिक जुटा सकता थावह मैंने जुटाया हैयदि कुछ कमी रह गयी है तो मैं उसे पूरा कर दूंगापरइसके लिए मुझे थोड़ा-सा समय दीजिए|"
वर के पिता ने गुस्से में भरकर कहा - "यदि दहेज देने की हैसियत नहीं थी तो अपनी बेटी की शादी किसी भिखमंगे के साथ कर देतेमेरा ही लड़का मिला था बेवकूफ बनाने कोअभी बिगड़ा ही क्या हैबेटी अभी अपने बाप के घर हैमिल ही जायेगा कोई न कोई भिखमंगा|"
उस अहंकारी और दहेज के लोभी ने रावजी की पगड़ी उछाल दी और बारातियों से बोला - "चलोमुझे नहीं करनी अपने बेटे की शादी ऐसी लड़की से जिसका बाप दहेज तक भी न जुटा सके|"
रावजी ने उसकी बड़ी मिन्नतें कींपर वह दुष्ट न माना और बारात वापस चली गयी|

बारात के वापस जाने से रावजी बड़ी बुरी तरह से टूट गयेवह दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर रह गयेउनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गयाअपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोच-सोचकर वह बुरी तरह से परेशान हो गयेवह गांव शिरडी से थोड़ी ही दूर था|
रावजी की आँखों से आँसू रुकने का नाम ही न ले रहे थेसारे गांव की सहानुभूति उनके साथ थीपर रावजी का मन बड़ा व्याकुल थाबारात वापस लौट जाने के कारण वह पूरी तरह से टूट गये थेवह खोये-खोये उदास-से रहने लगे थे|
बारात को वापस लौटे कई दिन बीत गए थे|
उन्होंने घर से निकलना बिल्कुल बंद कर दिया थावह सारे दिन घर में ही पड़े रहते और अपनी बेवसी पर आँसू बहाते रहते थेइस घटना का समाचार साईं बाबा तक नहीं पहुंचा थाउनका गांव शिरडी से थोड़ी ही दूरी पर थारोजाना ही उस गांव के लोग शिरडी आते-जाते थेबारात का बिना दुल्हन के वापस लौट जाना कोई मामूली बात न थीयह घटना सर्वत्र चर्चा का विषय बन गयी थी|
आखिर एक दिन यह बात साईं बाबा तक भी पहुंच ही गयी|

"रावजी इस अपमान से बहुत दु:खी हैंकहीं आत्महत्या न कर बैठें|" साईं बाबा को समाचार सुनाने के बाद रावजी का पड़ोसी चिंतित हो उठा|
एकाएक साईं बाबा के शांत चेहने पर तनाव पैदा हो गयाउनकी करुणामयी आँखें दहकते अंगारों में परिवर्तित हो गयीक्रोध की अधिकता से उनका शरीर कांपने लगाउनका यह शारीरिक परिवर्तन देखकर वहां उपस्थित शिष्य वह भक्तजन किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गएसाईं बाबा के शिष्य और भक्त उनका यह रूप पहली बार देख रहे थे|

अगले दिन रावजी के समधी के गांव का एक व्यक्ति रावजी के पास आयावह साईं बाबा का भक्त था|

"रावजीभगवान के घर देर तो हैपर अंधेर नहींतुम्हारे समधी ने जिस पैर से तुम्हारी पगड़ी को ठोकर मारकर उछाला थाउसके उसी पैर को लकवा मार गया हैउसके शरीर का दायां भाग लकवाग्रस्त हो गया है|"
यह सुनकर रावजी ने दु:खी स्वर में कहा -

"कितना कड़ा दंड मिला है उन्हेंमौका मिलते ही उन्हें एक-दो दिन में देखने जाऊंगा|"
रावजी को मिला यह समाचार एकदम ठीक थारावजी के समधी की हालात बहुत खराब थीउनके आधे शरीर को लकवा मार गया थावह मरणासन्न-सा हो गयाउसका जीना-न-जीना एक बराबर हो गयालाला का आधा दायां शरीर लकवे से बेकार हो गया थावह अपने बिस्तर पर पड़े आँसू बहाते रहतेउनके इलाज पर रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा थापर रोग कम होने की जगह दिन-प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा था|
उनके एक रिश्तेदार ने कहा - "लालाजी ! आप साईं बाबा के पास जाकर उनकी धूनी की भभूति क्यों नहीं मांग लेतेबैलगाड़ी में लेटे-लेटे चले जाइएबाबा की धूनी की भभूति से तो असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं|"
लाला इस बात को पहले भी कई व्यक्तियों से सुन चुके थे कि बाबा कि भभूति से हजारों रोगियों को नया जीवन मिल चुका हैभभूति लगाते ही रोग छूमंतर हो जाते हैं|
अगले दिन लाला के लड़के ने बैलगाड़ी जुतवाई और उसमें मोटे-मोटे गद्दे बिछाकर उन्हें आराम से लिटा दियालाला की बैलगाड़ी शिरडी में द्वारिकामाई मस्जिद के सामने आकर रुक गयी|
लड़के ने अपने साथ आये आदमियों की सहायता से लाला को बैलगाड़ी से नीचे उतारा और गोदी में उठाकर मस्जिद की ओर चल दिया|
साईं बाबा सामने ही चबूतरे पर बैठे हुए थेलाला को देखते ही वे एकदम से आगबबूला हो उठे और अत्यंत क्रोध से कांपते स्वर में बोले - "खबरदार लाला ! जो मस्जिद के अंदर पैर रखातेरे जैसे पापियों का यहां कोई काम नहीं हैतुरंत चला जावरना सर्वनाश कर दूंगा|"
दहशत के मारे लाला थर-थर कांपने लगाउनकी आँखों से आँसू बहने लगेबेटे ने उन्हें वापस लाकर बैलगाड़ी में लिटा दिया|

"पता नहीं साईं बाबा आपसे क्यों इस तरह से नाराज हैं पिताजी !"वकील और फिर कुछ सोचकर बोला - "पिताजी साईं बाबा ने आपको मस्जिद में आने से रोका हैमुझे तो नहीं रोकामैं चला जाता हूं|"

"ठीक हैतुम चले जाओ बेटा|" लाला ने दोनों हाथों से अपने आँसू पोंछते हुए कहालेकिन उसे आशा न थी|
लाला का बेटा मस्जिद के अंदर पहुंचासाईं बाबा के चरण स्पर्श करके एक और बैठ गया|
साईं बाबा बोले - "तुम्हारे बाप के रोग का कारण दुष्कर्मों का फल हैउसने अपने जीवन भर उचित-अनुचित तरीके और बेईमानी करके पैसा इकट्ठा किया हैवह पैसे के लिए कुछ भी कर सकता हैऐसे लोभीलालची और बेईमानों के लिए मेरे यहां कोई जगह नहीं है - और बेटेएक बात और याद रखोजो संतान चोरी और बेईमानी का अन्न खाती हैअपने पिता की चोरी और बेईमानी का विरोध नहीं करती हैउसे भी अपने पिता के बुरे-कर्मोंपापों दण्ड भोगना पड़ता है|"
लाला का बेटा चुपचाप सिर झुकाये अपने पिता के कर्मों के बारे में सुनता रहा|

"तुम मेरे पास आए होइसलिए मैं तुम्हें भभूति दिए देता हूंइसे अपने लोभी-लालची पिता को खिला देनायदि वह ठीक हो जाए तो उसे लेकर चले आना|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और फिर दर्शन करने का वायदा करके चला गया|

साईं बाबा की भभूति ने अपना चमत्कारी प्रभाव कर दिखायाचार-पांच दिन में लाला बिल्कुल ठीक हो गयाउसके लकवा पीड़ित अंग पहले की ही तरह काम करने लगे|

"साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप ठीक हो जाएं तो आप उनके पास अवश्य जायें|" लाला ने बेटे ने अपने पिता ने कहा|

"मैं वहां जाकर क्या करूंगा बेटे ! अब तो बीमारी का नामो-निशान भी बाकी न रहाफिर बेकार में ही इतनी दूर क्यों जाऊं?"

"लेकिन साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप उनके पास नहीं गये तो आपका रोग फिर बढ़ जाएगा और आपकी दशा और ज्यादा खराब हो जाएगी|" बेटे ने समझाते हुए कहा|
वह शिरडी जाना नहीं चाहता थाउसका मतलब निकल गया थाफिर भी बेटे के समझाते पर वह तैयार हो गयाबृहस्पतिवार का दिन थाशिरडी में प्रत्येक बृहस्पतिवार उत्सव के रूप में मनाया जाता थाजब लाला शिरडी पहुंच तो आस-पास सैंकड़ों आदमियों की भीड़ जमा थीभीड़ को देखकर लाला देखकर लाला परेशान हो गयाउस भीड़ में ज्यादातर दीन-दु:खी लोग थेउन लोगों के साथ जुलूम में शामिल होना लाला को अच्छा न लगा|वह अपनी बैलगाड़ी में ही बैठा रहाकेवल बेटे ने ही शोभायात्रा में हिस्सा लिया और पूरी श्रद्धा के साथ प्रसाद भी ग्रहण किया|
जब भीड़ कुछ छंट गयी तोउसने साईं बाबा के चरण स्पर्श किये|
बाबा ने उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दियाफिर एक चुटकी भभूति देकर बोले - "अपने पिता को तीन दिन दे देगाबचा-खुचा रोग भी नष्ट हो जाएगा|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और चला गया|
साईं बाबा की भभूति के प्रभाव से तीन दिन के अंदर ही लाला को ऐसा अनुभव होने लगाजैसे उसे नया जीवन प्राप्त हो गया होपिता की बीमारी के कारण बेटा उनका व्यापार देखने लगा थालाला के बेटे को व्यापार का कोई अनुभव न थाफिर भी बराबर लाभ हो रहा थालाला यह देखकर बहुत हैरान थेउन्हें यह सब कुछ एक चमत्कार जैसा लगा रहा था|
एक दिन लाला ने अपने बेटे से कहा - "एक बात समझ में नहीं आ रही बेटे ! तुम्हें व्यापर का कोई अनुभव नहीं थाडर लगता था कि तुम जैसे अनुभवहीन को व्यापार सौंपकर मैंने कोई गलती तो नहीं की हैलेकिन में देख रहा हूं कि तुम जो भी सौदा करते होउसमें बहुत लाभ होता है|"

"यह सब साईं बाबा के आशीर्वाद का ही फल है पिताजी ! उन्होंने मुझे आशीर्वाद दियासाईं बाबा तो साक्षात् भगवान के अवतार हैं|" बेटे ने कहा|

"तुम बिल्कुल ठीक कहते हो बेटा ! मुझे व्यापार करते हुए तीस वर्ष बीत चुके हैंमुझे आज तक व्यापार में कभी इतना ज्यादा लाभ नहीं हुआजितना आजकल हो रहा हैवास्तव में साईं बाबा भगवान के अवतार हैं|" अब लाला के मन में भी साईं बाबा के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो रही थी|

दूसरे दिन साईं बाबा की तस्वीरें लेकर एक फेरीवाला गली में आयालाला ने उसे बुलाकर पूछा - "ये कैसी तस्वीरें बेच रहे हो?"

"लालाजीमेरे पास तो केवल शिरडी के साईं बाबा की ही तस्वीरें हैंमैं उनके अलावा किसी और की तस्वीरें नहीं बेचता हूं|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
कुछ देर तक तो लाला सोचते रहेउन्होंने सोचासाईं बाबा की भभूति से ही मेरा रोग दूर हुआ हैउन्हीं के आशीर्वाद से मेरा बेटा व्यापार में बहुत लाभ कमा रहा हैयदि एक तस्वीर ले लूंतो कोई नुकसान नहीं होगालाला ने एक तस्वीर पसंद करके ले ली|
कुछ देर पहले ही दुकान का मुनीम पिछले दिन की रोकड़ लाला को दे गया थावह अपने पलंग पर रुपये फैलाए उन्हें गिन रहे थेलाला ने उन ढेरियों की ओर संकेत करके कहा - "लो भईतुम्हारी तस्वीर के जो भी दाम होंइनमें से उठा लो|" पर तस्वीर बेचने वाले ने चांदी का केवल एक छोटा-सा सिक्का उठाया|

"बस इतने ही पैसे ! ये तो बहुत कम हैं और ले लो|" लाला ने बड़ी उदारता के साथ कहा|
तस्वीर बेचने वाले ने कहा - "नहीं सेठ ! बाबा कहते हैं कि लालच इंसान का सबसे बड़ा शत्रु हैमैं लालची नहीं हूंमैंने तो उचित दाम ले लिएयह लालच तो आप जैसे सेठ लोगों को ही शोभा देता है|"
उसकी बात सुनकर लाला को ऐसा लगा कि जैसे उस तस्वीर बेचने वाले ने उनके मुंह पर एक करारा थप्पड़ जड़ दिया होउन्होंने अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा - "बहुत दूर से आ रहे होकम-से-कम पानी तो पी ही लो|"

"नहींमुझे प्यास नहीं है सेठजी !"
ठीक तभी लाला का बेटा वहां आ गयाउसने साईं बाबा की तस्वीर देखीउसे बहुत प्रसन्नता हुईउसने तस्वीर बेचने वाले की ओर देखकर कहा - "भाईहमारे घर में साईं बाबा की कोई तस्वीर नहीं थीमैं बहुत दिनों से उनकी तस्वीर खरीदने की सोच रहा थायहां किसी भी दुकानदार के पास बाबा की तस्वीर नहीं थी|"

"चलिएआज आपकी इच्छा पूरी हो गयी|" तस्वीर बेचने वाला हँसकर बोला|

"इस खुशी में आप जलपान कीजिए|" लाला ने बेटे ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा - "साईं बाबा की कृपा से ही मेरे पिताजी का रोग समाप्त हुआ हैव्यापार में भी दिन दूना-रात चौगुना लाभ हो रहा है|"

"यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो मैं जलपान अवश्य करूंगा|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
लाला अपने मन में सोचने लगा कि तस्वीर बेचने वाला भी बड़ा अजीब आदमी हैपहले लालच की बात कहकर मेरा अपमान कियाफिर जब मैंने पानी पीने के लिये कहातो पानी पीने से इंकार कर फिर से मेरा अपमान कियामेरे बेटे के कहने पर पानी तो क्या जलपान करने के लिए तुरंत तैयार हो गया|
तस्वीर वाले ने जलपान किया और अपनी गठरी उठाकर चला गया|

उधर कई दिन के बाद रावजी ने सोचा कि शिरडी जाकर साईं बाबा के दर्शन कर आएंउनके दर्शन से मन का दुःख कुछ कम हो जाएगायही सोचकर वह अगले दिन पौ फटके ही शिरडी के लिए चल दिया|
शिरडी पास ही थाराव आधे घंटे में ही शिरडी पहुंच गयाअपमान की पीड़ाचिंता से राव की हालात ऐसी हो गयी थीजैसे वह महीनों से बीमार हैउनका चेहरा पीला पड़ गया थामन की पीड़ा चेहरे पर स्पष्ट नजर आती थी|

"मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं राव !" साईं बाबा ने अपने चरणों पर झुके हुए राव को उठाकर बड़े प्यार से उसके आँसू पोंछते हुए कहा - "तुम तो ज्ञानी पुरुष होयह क्यों भूल गए कि दुःख-सुखमान-अपमान का सामना मनुष्य को कब करना पड़ जाएयह कोई नहीं जानता|"
राव ने कोई उत्तर नहीं दियावह बड़बड़ायी आँखों से बस साईं बाबा की ओर देखता रहा|

"जो ज्ञानी होते हैं वे दुःख आने पर न तो आँसू बहाते हैं और न सुख आने पर खुशी से पागल होते हैं|" - साईं बाबा ने कहा - "यदि हम किसी को दुःख देंगेतो भगवान हमें अवश्य दुःख देगायदि हम किसी का अपमान करेंगे तो हमें भी अपमान सहन करना पड़ेगायही भगवान का नियम हैइसी नियम से ही यह संसार चल रहा है|"

"नहींमुझे भगवान के न्याय से कोई शिकायत नहीं है|" रावजी ने आँसू पोंछते हुए कहा|

"सुनो रावकभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमें अपने पूर्वजन्म के किसी अपराध का दण्ड इस जन्म में भी भोगना पड़ता हैकभी-कभी पिछले जन्मों का पुण्य हमारे इस जन्म में भी काम आ जाता है और हम संकट में पड़ जाने से बच जाते हैंजो दुःख तुम्हें मिला हैवह शायद तुम्हें तुम्हारे पूर्वजन्म के किसी अपराध के कारण मिला हो|"

"हां ! ऐसा हो सकता है बाबा !"

"और रावयह भी तो हो सकता है कि इस अपमान के पीछे कोई अच्छी बात छिपी हुई होबिना सोचे-विचारे भाग्य को दोष देने से क्या लाभ !"

"मुझसे भूल हो गयी बाबा ! दुःख और अपमान की पीड़ा ने मेरा ज्ञान मुझसे छीन लिया थाआपने मुझे मेरा खोया हुआ ज्ञान लौटा दिया है|" राव ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा|

"तुम किसी बात की चिंता मत करो रावजी ! भगवान पर भरोसा रखोवह जो कुछ भी करते हैंहमारे भले के लिए ही करते हैंतुम अगले बृहस्पतिवार को बिटिया को लेकर मेरे पास आनाभगवान चाहेंगे तो तुम्हारा भला ही होगा|" साईं बाबा ने कहा|
रावजी ने साईं बाबा के चरण हुए और उनका आशीर्वाद लेकर वापस अपने गांव लौट गया|
राव जब अपने गांव की ओर लौट रहा थाउसे तो अपना मन फूल की भांति हल्का महसूस हो रहा थाउसके मन का सारा बोझ हल्का हो चुका था|उधर तस्वीर वाले के चले जाने के बाद लाला बहुत देर तक किसी सोच में डूबा रहाउसके चेहरे पर अनेक तरह के भाव आ-जा रहे थेउसके मन में विचारों की आँधी चल रही थीउसने अपना स्वभाव बदल दिया थाअब वह सुबह उठकर भगवान की पूजा करने लगा थाउसके पास जो कोई भी साधु-संन्यासीअतिथि आता तो वह उसका यथासंभव स्वागत-सत्कार करतावह जिस चीज की मांग करतावह उसे पूरी करताउसने साधारण कपड़े पहनना शुरू कर दिये थेअकारण क्रोध करना भी छोड़ दिया था|
लाला अक्सर अपने बेटे को समझता - "बेटाजिस व्यापार में ईमानदारी और सच्चाई होती हैउसी में सुख और शांति रहती हैझूठ और बेईमानी मनुष्य का चरित्र पतन कर देती हैउसे फल भी अवश्य ही भोगना पड़ता हैइसमें कोई संदेह नहीं है|"

"आप जैसा कहेंगेमैं वैसा ही करूंगा पिताजी !" - बेटे का जवाब था|

"हमें शिरडी चलना है|" - लालाजी ने एक दिन अपने बेटे को याद दिलाया|

"हांमुझे याद हैहम साईं बाबा के दर्शन करने अवश्य चलेंगे|"
अचानक लाला का चेहरा उदास और फीका पड़ गयावह बड़े दु:खभरे स्वर में बोलामानो जैसे पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहा हो उसने कहा - "मैंने रावजी कि बेटी का तेरे साथ विवाह न करके बहुत बड़ा पाप किया हैरावजी बड़े ही नेक और सीधे-सादे आदमी हैंवह भी साईं बाबा के भक्त हैंबारात लौटाकर मैंने उनका बहुत बड़ा अपमान किया है|"

"जो कुछ बीत गयाअब उसके पीछे पश्चात्ताप करने से क्या लाभ पिताजी !" लड़के ने दु:खभरे स्वर में कहा - "अब आप यह सब भूल जाइए|"

"कैसे भूलूं बेटा ! मैं अब इस अपराध का प्रायश्चित करना चाहता हूं|"
लालाजी ने मन-ही-मन निश्चय कर लिया था कि राव की बेटी का विवाह अपने बेटे से करअपने पाप का प्रायश्चित अवश्य करेंगेवह सबसे अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए भी क्षमा मांगने के बारे में सोच रहे थेदिन बीतते गये|
बृहस्पतिवार का दिन आ गया|
लाला अपने बेटे के साथ मस्जिद के आँगन में पहुंचेतो उनकी नजर राव पर पड़ीराव भी उनकी ओर देखने लगेअचानक लाला ने लपककर राव के पैर पकड़ लिये|

"अरेअरे आप यह क्या कर रहे हैं सेठजी ! मेरे पांव छूकर मुझे पाप का भागी मत बनाइए|" - राव लाला के इस व्यवहार पर हैरान रह गये थे|

"नहीं रावजीजब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगेमैं आपके पैर नहीं छोड़ूंगा|" लाला ने रुंधे गले से कहा - "जब से मैंने आपका अपमान किया हैतब से मेरा मन रात-दिन पश्चात्ताप की अग्नि में जलता रहता हैजब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगेमैं पैर नहीं छोड़ूंगा|"
तभी एक व्यक्ति बोला - "साईं बाबा आपको याद कर रहे हैं|"
वह दोनों साईं बाबा के पास गयेलाला ने साईं बाबा से अपने मन की बात कही|
लाला का हृदय परिवर्तन देखकर साईं बाबा प्रसन्न हो गयेफिर उन्होंने पूछा - "सेठजीआप का रोग तो दूर हो गया है न?"

"हां बाबा ! आपकी कृपा से मेरा रोग दूर हो गयालेकिन मुझे सेठजी मत कहिये|"

"तुम्हारे विचार सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुईएक मामूली-सी बीमारी ने तुम्हारे विचार बदल दिएकिसी भी पाप का दंड यही हैअपने पाप को स्वीकार कर प्रायश्चित्त करनायह धन-दौलत तो बेकार की चीज हैआज है कल नहींइससे मोह करना बुद्धिमानी नहीं है|"
फिर तभी बाबा ने अपना हाथ हवा में लहरायावहां उपस्थित सभी लोगों ने देखाउनके हाथ में दो सुंदर व मूल्यवान हार आ गये थे|

"उठो सेठएक हार अपने बेटे को और दूसरा हार लक्ष्मी बेटी को दे दोये एक-दूसरे को पहना दें|" बाबा ने कहा|
लाला ने एक हार अपने बेटे को और दूसरा रावजी की बेटी का दे दियादोनों ने हार एक-दूसरे को पहनाये और फिर साईं बाबा के चरणों में झुक गये|

"तुम दोनों का कल्याण होजीवनभर सुखी रहो|" - साईं बाबा न आशीर्वाद दिया|
राव और लाला की आँखें छलक उठींउन्होंने एक-दूसरे की ओर देखाफिर दोनों ने एक-दूसरे को बांहों में भर लियासब लोग यह दृश्य देखकर खुशी से साईं बाबा की जय-जयकार करने लगे|


परसों चर्चा करेंगे..कुश्ती के बाद बाबा जी में बदलाव

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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