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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Friday, 4 July 2014

श्री साईं लीलाएं - कुश्ती के बाद बाबा में बदलाव

ॐ सांई राम







परसों हमने पढ़ा था.. संकटहरण श्री साईं 

श्री साईं लीलाएं

कुश्ती के बाद बाबा में बदलाव
अपने शुरूआती जीवन में साईं बाबा भी पहलवान की तरह रहते थेशिरडी में मोहिद्दीन तंबोली नाम का एक पहलवान रहा करता थाबाबा से एक बार किसी बात पर कहा-सुनी हो गईजिसके फलस्वरूप उसने बाबा को कुश्ती लड़ने कि चुनौती दे डालीबाबा अंतर्मुखी थेफिर भी उन्होंने उसकी चुनौती को स्वीकार कर लिया|


फिर दोनों में बहुत देर तक कुश्ती होती रहीआखिर में बाबा उससे कुश्ती में हार गयेमोहिद्दीन से कुश्ती में हार जाने के बाद बाबा के रहन-सहन और पहनावे में अचानक बदलाव आ गयाअब बाबा कफनी पहना करतेलंगोट बांधते और सिर पर सफेद कपड़ा बांधतेजिससे सिर ढंक जाएआसन व सोने के लिये बाबा टाट का एक टुकड़ा ही प्रयोग में लिया करते थेबाबा फटे-पुराने कपड़े पहनकर ही संतुष्ट रहते थेबाबा सदैव अलमस्त रहते और कपड़ाखाना इस चीजों पर उनका ध्यान तक नहीं होता|

साईं बाबा सदैव यही कहते थे - "गरीबी अव्वल बादशाहीअमीरी से लाख सवाईगरीबों का अल्लाह भाई|' इसका अर्थ यह है कि अमीरी से बड़ी बादशाहत गरीबी में हैइसका कारण यह है कि गरीब का भाईबंधु या सहायक अल्लाहईश्वर हैयदि इस पर विचार किया जाये तो अमीर को अनेकों तरह की चिंताएं हर समय घेरे रहती हैंवह सदैव उन्हीं में पड़ा रहता हैलेकिन गरीब व्यक्ति सदैव ईश्वर को ही याद करता रहता हैवैसे भी अभावों में हीगरीबी में ही ईश्वर याद आता है अन्यथा कोई ईश्वर को याद नहीं करताजो व्यक्ति ईश्वर की भक्ति में लीन रहता हैवह निश्चिंत रहता हैनिश्चिंत रहने वाला व्यक्ति ही वास्तव में बादशाह हैइसीलिए शायद बाबा ऐसा उच्चारण किया करते थे|कुश्ती का शौक पुणे तांबे के वैश्य संत गंगागीर को भी थावे भी अक्सर शिरडी आते-जाते रहते थेएक समय जब वह कुश्ती लड़ रहे थे तब अचानक ही उनके मन में कुश्ती त्याग देने का भाव पैदा हो गयाफिर एक अवसर अपर उन्हें ऐसा महसूस हुआजैसे कोई उनसे कह रहा हो कि भगवान के साथ खेलते हुए शरीर को त्याग देने में ही इस जीवन की सार्थकता है|
वस्तुत: यह उनकी अन्तर्रात्मा की आवाज थीजिसका अर्थ यह था कि परमात्मा के श्रीचरणों में लगन लगाओइस अन्तर्रात्मा की आवाज को सुनने के बाद संत गंगागीर के मन में इस संसार से पूरी तरह वैराग्य पैदा हो गया और वे पूर्णरूपेण आध्यात्म की ओर प्रवृत्त हो गए|
इसके बाद में उन्होंने पुणे तांबे के नजदीक ही एक मठ बनाया और उसमें अपने शिष्यों के साथ रहने लगेवहीं पर रहकर उन्होंने मोक्ष की प्राप्ति की|मोहिद्दीन से कुश्ती में हार जान के बाद साईं बाबा में भारी परिवर्तन पैदा हो गया थाबाबा अब पूरी तरह से अंतर्मुखी हो गये थेबाबा अब न तो किसी से मिलते-जुलते थे और न ही किसी से बात किया करते थेयदि कोई उनके पास अपनी समस्या आदि लेकर जाता था तो बाबा उसका मार्गदर्शन अवश्य करते थेउनके श्रीमुख से परमार्थ विचार ही निकलते और उन अमृत बोलों को सुनने वाले धन्य हो जाते|
कुश्ती की घटना के बाद बाबा की जीवनचर्या भी पूरी तरह से बदल गयी थीअब बाबा का ठिकाना दिन में नीम के पेड़ के नीचे होता जहां पर वे बैठकर अपने स्वरूप (आत्मा) में लीन रहतेइच्छा होने पर गांव की मेड़ पर नाले के किनारे एक बबूल के पेड़ की छाया में बैठ जाते थेसंध्या समय बाबा वायु सेवन के लिए स्वेच्छानुसार विचरण करते थे|
इच्छा होने पर बाबा कभी-कभार नीम गांव भी चले जाया करते थेवहां के बाबा साहब डेंगले से साईं बाबा को विशेष लगाव थाबाबा साहब डेंगले के छोटे भाई नाना साहब डेंगले थेउन्होंने दो विवाह किएफिर भी वे संतान सुख से वंचित थेएक बार नाना साहब को उनके बड़े भाई बाबा साहब ने शिरडी जाकर साईं बाबा के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद लेने को कहानाना साहब ने अपने बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए शिरडी जाकर साईं बाबा के दर्शन किएसाईं बाबा के दर्शन और आशीर्वाद के परिणामस्वरूप एक निश्चित अवधि के बाद नाना साहब को पुत्र की प्राप्ति हो गई|
ऐसे ही लोगों की मुरादें पूरी होती रहीं और साईं बाबा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलती चली गयीअब चारों ओर से अधिक संख्या में लोग बाबा के दर्शन करने के लिए रोजाना शिरडी आने लगेबाबा अपने किसी भी भक्त को निराश नहीं करते और अपना आशीर्वाद देकर उसकी मनोकामना को पूर्ण करते|
द्वारिकामाई मस्जिद में साईं बाबा को उनके भक्त दिनभर घेरकर बैठे रहते थेरात को बाबा टूटी-फूटी हुई मस्जिद में सोया करते थेबाबा का रहने का ठिकाना द्वारिकामाई मस्जिद थावह दो हिस्सों में टूटी-फूटी इमारत थीबाबा वहीं रहतेसोते और वहीं बैठक लगातेबाबा के चिलमतम्बाकूटमरेललम्बी कफनीसिर के चारों ओर लपेटने के लिए एक सफेद कपड़ा और सटका थाकुल जमा सामन था जो बाबा सदैव अपने पास रखा करते थेबाबा अपने सिर पर उस सफेद कपड़े को कुछ इस ढंग से बांधा करते थे कि कपड़े का एक किनारा बाएं कान के ऊपर से होकर पीठ पर गिरता हुआ ऐसा लगता था जैसे कि बाबा ने बालों का जूड़ा बना रखा होबाबा उस सिर पर बांधने वाले कपड़े को कई-कई सप्ताह तक नहीं धोया करते थे|
साईं बाबा सदैव नंगे पैरों ही रहा करते थेउन्होंने अपने पैरों में कभी भी जूते-चप्पल या खड़ाऊँ आदि पहनने का उपयोग नहीं किया थाआसन पर बैठने के नाम पर बाबा के पास टाट का एक टुकड़ा थाजिसे वे दिन के समय अपने बैठने के काम में लिया करते थेसर्दी से बचने के लिए एक धूनी हर समय जलती रहती थी और आज भी वह धूनी मौजूद हैबाबा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके धूनी तापते थेधूनी में वे छोटे-छोटे लकड़ियों के टुकड़े डालते रहते थेऐसा करके बाबा अपनी अहंइच्छा और आसक्तियों की आहुति दिया करते थेकभी-कभी लकड़ी के गट्ठर पर हाथ रखे बाबा धूनी को टकटकी लगाये देखते रहते थेबाबा की जुबान पर सदैव 'अल्लाह मालिकका उच्चारण रहता था|बाबा के पास हर समय भक्तों का तांता लगा रहता थाउस मस्जिद की पुरानी हालत और स्थानाभाव को देखते हुए बाबा के शिष्यों ने सन् 1912 में उसे मरम्मत करके नया रंग-रूप प्रदान कर दियाबाबा जब कभी भाव-विभोर हो जाया करते थे तो वे तब अपने पैरों में घुंघरूं बांधकर काफी देर तक नाचते-गाते रहेत थेयह दृश्य बहुत खूबसूरत होता था
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कल चर्चा करेंगे..जब बाबा जौहर अली के चेले बने 

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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