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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Monday, 18 August 2014

श्री साईं लीलाएं - माँ! मेरे गुरु ने तो मुझे केवल प्यार करना ही सिखाया है

ॐ सांई राम




कल हमने पढ़ा था.. साठे पर बाबा की कृपा 

श्री साईं लीलाएं

माँ! मेरे गुरु ने तो मुझे केवल प्यार करना ही सिखाया है
  
साठे मुम्बई के प्रसिद्ध व्यापरी थेएक बार उन्हें अपने व्यापार में बहुत हानि उठानी पड़ीजिससे वे बहुत उदास-निराश हो गयेउनके मन में घर-बार छोड़कर एकांतवास करने के विचार पैदा होने लगेसाठे की ऐसी स्थिति देखकर उनके एक मित्र ने उनसे कहा - "साठे ! तुम शिरडी चले जाओ और वहां पर कुछ दिन साईं बाबा की संगत में रहोसत्संग में रहकर व्यक्ति निश्चित हो जाता है और साईं बाबा तो वैसी भी साक्षात् ईशावतार हैंआज तक बाबा के दरबार से कोई भी निराश होकर नहीं लौटा हैइसलिए लोग बड़ी दूर-दूर से उनके दर्शन करने के लिये शिरडी जाते हैंयदि मेरी बात मानो तो तुम भी एक बार शिरडी जाकर देख लोयदि बाबा चाहेंगे तो तुम्हारी भी झोली भर देंगे|"
मित्र की बातों का साठे पर एकदम सीधा प्रभाव पड़ावे शिरडी गयेशिरडी पहुंचकर जब उन्होंने साईं बाबा के दर्शन किये तो मन को बहुत शांति मिलीउन्हें एक नया हौसला मिलावे सोचने लगे कि पिछले जन्म के शुभ कर्मों के कारण ही उन्हें साईं बाबा का सान्निध्य प्राप्त हुआ है साठे ने शिरडी में रहकर 'गुरुचरित्रग्रंथ का पारायण शुरू कर दियापारायण की आखिरी रात में उन्हें स्वप्न दिखाई पड़ा कि बाबा स्वयं गुरुचरित्र ग्रंथ हाथ में लिए हुए उस पर प्रवचन कर रहे हैं और वह सामने बैठकर सुन रहे हैंनींद खुलने पर उन्हें प्रसन्नता हुई और स्वप्न को याद कर उनका गला भर आया|
सुबह होने पर साठे काका साहब दीक्षित से मिले और अपना रात्रि का स्वप्न बताकर उसके बारे में पूछातब काका असमर्थता जताते हुएउनके साथ जाकर बाबा से मिलेपूछने पर बाबा ने बताया - "साठेगुरुचरित्र पढ़ने से मन शुद्ध होता हैविचार पवित्र बनते हैंअब तुम मेरी आज्ञा से एक सप्ताह का पारायण और करो तो तुम्हारा कल्याण होगाईश्वर प्रसन्न होकर तुम्हें भवबंधन से मुक्ति देंगे|" साठे की समस्या का समाधान हो गया और बाबा की अनुमति लेकर वे अपने ठहरने के स्थान पर लौट आये|जिस समय साईं बाबा काका साहब को साठे के बारे में 'गुरुचरित्रका पारायण करने के बारे में बता रहे थेउस समय मस्जिद में बाबा के भक्त गोविन्द रघुनाथ दामोलकर (हेमाडपंत) तथा अष्ठा साहब बाबा की चरण सेवा कर रहे थेयह सुनकर उनके मन में विचार आया कि 'मैं तो पिछले चालीस वर्षों से गुरुचरित्र का पारायण करता आया हूंऔर सात वर्षों से बाबा की सेवा में हूंपरन्तु जो साठे को बाबा से सात दिन में मिल गयावह मुझे क्यों नहीं मिलामुझे बाबा का उपदेश कब होगा?'
हेमाडपंत के मन में उठ रहे विचारों के बारे में बाबा जान चुके थेबाबा ने उनसे कहा - "तुम शामा के पास जाकर मेरे लिये पंद्रह रुपये दक्षिणा मांग के ले आओलेकिन वहां थोड़ी देर बैठकर वार्तालाप करना और बाद में आना|" हेमाडपंत तुरंत उठे और शामा के पास गयेशामा उस समय स्नान क्रिया से निवृत होकर कपड़े पहन रहे थेउन्होंने हेमाडपंत से कहा कि आप सीधे मस्जिद से आ रहे हैंआप बैठकर थोड़ा-सा आराम कर लेंतब तक मैं पूजा कर लूंऐसा कहकर शामा अंदर कमरे में पूजा करने चले गए|
हेमाडपंत की नजर अचानक खिड़की में रखी 'एकनाथी भगवानग्रंथ पर पड़ीसहजभाव से खोलकर देखा तो जो अध्ययन आज सुबह उन्होंने साईं बाबा के दर्शन करने के लिए जल्दी में अधूरा छोड़ा थावही थाहेमाडपंत बाबा की लीला को देखकर हैरान रह गयेफिर उन्होंने सोचा कि सुबह पढ़ना अधूरा छोड़कर मैं गया थायह गलती सुधारने के लिए ही बाबा ने मुझे यहां भेजा होगाफिर वहां पर बैठे-बैठे उन्होंने वह अध्याय पूर्ण किया|
जब शामा बाहर आये तो हेमाडपंत ने बाबा का संदेश सुनायाशामा ने कहामेरे पास पंद्रह रुपये नहीं हैंरुपयों के बदले आप दक्षिणा के रूप में मेरे पंद्रह नमस्कार ले जाइएहेमाडपंत ने स्वीकार कर लियाउन्होंने हेमाडपंत को पान का बीड़ा दिया और बोलेआओ कुछ देर बैठकर बाबा की लीलाओं पर चर्चा कर लें|
फिर दोनों में वार्तालाप होने लगाशामा बोलेबाबा की लीलाएं बहुत गूढ़ हैंजिन्हें कोई समझ नहीं सकताबाबा लीलाओं से निर्लेप हुए हास्य-विनोद करते रहते हैंइस अज्ञानी बाबा की लीलाओं को क्या जानेंअब देखो तो बाबा ने आप जैसे विद्वान को मुझ अनपढ़ के पास दक्षिणा लेने भेज दियाबाबा की क्रियाविधि को कोई नहीं समझ सकतामैं तो बाबा के बारे में केवल इतना ही कह सकता हूं कि जैसी बाबा में भक्त की निष्ठा होती हैउसी अनुसार बाबा उसकी मदद करते हैंकभी-कभी तो बाबा किसी-किसी भक्त की कड़ी परीक्षा लेने के बाद ही उसे उपदेश देते हैंउपदेश शब्द सुनते ही हेमाडपंत को गुरुचरित्र पारायण वाली बात का स्मरण हो आयावह सोचने लगे कि कहीं बाबा ने उनके मन की चंचलता को दूर करने के लिए लो उन्हें यहां नहीं भेजा हैफिर वे शामा से बाबा की लीलाओं को एकग्रता से सुनने लगे -
शामा सुनाने लगे - "एक समय संगमनेर से खाशावा देशमुख की माँ श्रीमती राधाबाईसाईं बाबा के दर्शन के लिए शिरडी आयी थींवह बहुत वृद्धा थींबाबा का दर्शन कर लेने पर वह सफर की सारी तकलीफें भूल गयींबाबा के प्रति उनकी बहुत निष्ठा थीउनके मन में बाबा से उपदेश लेने की तीव्र इच्छा थीउन्होंने अपने मन में यह निश्चय किया कि जब तक बाबा गुरोपदेश नहीं करतेतब तक वह शिरडी और छोड़ेंगी और आमरण-अनशन करने का निर्णय कियावे अपनी जिद्द की पक्की थींउन्होंने अन्न-जल त्याग दियातीन दिन बीत गयेभक्तगण चिंतित हो गयेपर वे माननेवाली नहीं थीं|
उनकी ऐसी स्थिति देखकर मैं भयभीत हो गयामैंने मस्जिद में जाकर बाबा से प्रार्थना की - "हे देवा ! देशमुख की माँ आपकी भक्त हैंआपका गुरु उपदेश पाने के लिए उन्होंने खाना-पीना तक छोड़ दिया हैयदि आपने उसे उपदेश नहीं दिया और दुर्भाग्य से उन्हें कुछ हो गया तो लोग आपकी ही दोषी ठहरायेंगेआप पर बेवजह इल्जाम लगायेंगेआप कृपा करके इस स्थिति को टाल दीजिये|"
शामा की बात सुनकर पहले तो बाबा मुस्कराएउन्हें उस बूढ़ी माँ पर दया आ गयीबाबा ने उन्हें अपने पास बुलाकर कहा - "माँ ! तुम जानबूझकर क्यों अपनी जान से खेल रही होशरीर को कष्ट देकर क्यों मृत्यु का आलिंगन करना चाहती होमांग के जो कुछ मिलता हैउसी से गुजारा करनेवाला फकीर हूंतुम मेरी माँ हो और मैं तुम्हारा बेटातुम मुझ पर रहम करोजो कुछ मैं तुमसे कहता हूंउस पर ध्यान दोगी तो तुम भी सुखी हो जाओगीमैं तुमसे अपनी कथा कहता हूंउसे सुनोगी तो तुम्हें भी अपार शांति मिलेगीसुनो -
मेरे श्री गुरु बहुत बड़े सिद्धपुरुष थेमैं कई वर्षों तक उनकी सेवा करके थक गयातब भी उन्होंने मेरे कान में कोई मंत्र नहीं फूंकामैं भी अपनी बात का पक्का थाचाहे कुछ भी हो जाएयदि मंत्र सीखूंगा तो इन्हीं सेयह मेरी जिद्द थीपर उनकी तो रीति ही निराली थीपहले उन्होंने मेरे सर के बाल कटवाये और फिर मुझसे दो पैसे मांगेमैं समझ गया और मेंने उन्हें दो पैसे दे दिएवास्तव में वे दो पैसे श्रद्धा और सबूरी (दृढ़ निष्ठा और धैर्य) थेमैंने उसी पल उन्हें वे दोनों चीजें अर्पण कर दींवे बड़े प्रसन्न हुएउन्होंने मुझ पर कृपा कर दीफिर मैंने बारह वर्ष तक गुरु की चरणवंदना कीउन्होंने ही मेरा भरण-पोषण कियाउनका मुझ पर बड़ा प्रेम थाउन जैसा कोई विरला गुरु ही मिलेगामैंने अपने गुरु के साथ बहुत कष्ट उठायेउनके साथ बहुत घूमाउन्होंने भी मेरे लिये बहुत कष्ट उठायेमेरी इच्छी से परवरिश कीहम आपस में बहुत प्यार करते थे|गुरु के बिना मुझे एक पल भी कहीं चैन नहीं मिलता थामैं भूख-प्यास भूलकर हर पल गुरु का ही ध्यान करता थावही मेरे लिए सब कुछ थेमुझे सदैव गुरुसेवा की ही चिंता लगी रहती थीमेरा मन उनके श्रीचरणों में ही लगा रहता थामेरे मन का गुरुचरणों में लगना एक पैसे की दक्षिणा हुईदूसरा पैसा धैर्य थादीर्घकाल तक मैं धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करता हुआ गुरु की सेवा करता रहाकि यही धैर्य एक दिन तुम्हें भी भवसागर से तार देगाधैर्य धारण करने से मनुष्य के पाप और मोह नष्ट होकर संकट दूर हो जाते हैं और भय नष्ट हो जाता हैधैर्य धारण करने से तुम्हें भी लक्ष्य की प्राप्ति होगीधैर्य उत्तम गुणों की खानउत्तम विचारों की जननी हैनिष्ठा और धैर्य दोनों सगी बहनें हैं|
मेरे गुरु ने मुझसे कभी कुछ नहीं मांगा और बार-बार मेरी रक्षा कीहर मुश्किल से मुझे निकाला और कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ावैसे तो मैं सदैव गुरुचरणों में ही रहता थायदि कभी कहीं चला भी जाता जब भी उनकी कृपादृष्टि मुझ पर लगातार रहती थीजिस प्रकार एक कछुवी माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण प्रेम-दृष्टि से करती हैवैसे ही मेरे गुरु का प्यार थामाँ ! मेरे गुरु ने मुझे कोई मंत्र नहीं सिखायाफिर मैं तुम्हारे कान में कोई मंत्र कैसे फूंक दूंइसलिए व्यर्थ में उपदेश पाने का प्रयास न करोअपनी जिद्द छोड़ दो और अपनी जान से मत खेलोतुम मुझे ही अपने कर्मों और विचारों का लक्ष्य बना लोसिर्फ मेरा ही ध्यान करो तो तुम्हारा पारमार्थ सफल होगातुम मेरी और अनन्य भाव से देखो तो मैं भी तुम्हारी ओर अनन्य भाव से देखूंगाइस मस्जिद में बैठकर मैं कभी असत्य नहीं बोलूंगाकि शास्त्र या साधना की जरूरत नहीं हैकेवल गुरु में विश्वास करना ही पर्याप्त हैकेवल यही विश्वास रखो कि गुरु ही कर्त्ता हैवही मनुष्य धन्य है जो गुरु की महानता को जानता हैजो गुरु को ही सब कुछ समझता हैवही धन्य हैक्योंकि फिर जानने के लिए कुछ भी बाकी नहीं रहता|"
बाबा के इन वचनों को सुनकर राधाबाई के मन को बड़ी शांति मिलीआँखें भर आयींफिर बाबा के चरण स्पर्श करके उसने अपना अनशन त्याग दिया|

कल चर्चा करेंगे..सब के प्रति प्रेम-भाव रखो       

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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