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Wednesday 4 September 2013

श्री गुरु तेग बहादर जी – साखियाँ - संत मलूक दास का भ्रम दूर करना

श्री गुरु तेग बहादर जी – साखियाँ



संत मलूक दास का भ्रम दूर करना


चलते-चलते गुरु तेग बहादर जी मानकपुर नगर के पास जा ठहरे|इस गाँव में एक वैष्णव संत मलूक दस रहते थे|वह गुरु जी के दर्शन करना चाहता था,परन्तु वह यह निश्चय करके बैठारहा कि गुरु जी अगर अंतर्यामी है,तो स्वयं मुझे बुलाकर दर्शन देंगे| 

अन्तर्यामी गुरु मलूक दास कि प्रतिज्ञा जान गये|उन्होंने एक सिख को कहा कि मलूक दास के डेरे जाकर उसे पालकी में बिठाकर हमारे पास लाओ| एक सिख ने मलूक दास को जाकर बताया कि गुरु जी आपको याद कर रहे है|पालकी में बैठ जाओ,हम आपको ले चलते है|

गुरु तेग बहादर जी का ऐसा हुक्म सुनकर मलूक दास बहुत प्रसन्न हुआ|यह पालकी में बैठकर गुरु जी के पास पहुँच गया| पालकी से उतकर उसने गुरु को माथा टेका और फिर यह दोहरा उच्चारण किया-

मलूका पापी खेड को भगति ण जानी तोहि||
भगति लिखी थी और को प्रभू धोखा दे मोहि||४७||


गुरु जी ने कहा-

सुनि मलूक हरि के भगति नहि राखो मन दरोहि ||
भगति लिखी थी अवर को करि किरपा दई तोहि||४९||


गुरु जी के वचन सुनकर और दर्शन करके म्ल्लुक दास आनंदमय हो गया| उसने प्रार्थना कि आप मेरे डेरे चले|मैं भी आपकी सेवा करके जनम सफल करना चाहता हूँ|उसकी प्रार्थना सुनकर गुरु जी ने डेरे पे जाना स्वीकार किया|

मलूक ने भोजन तैयार करके गुरु जी के आगे रख दिया|उसने यह भी प्रार्थना की कि महाराज! पहले मैं पत्थर के ठाकरों को भोग लगाया करता हूँ|आज आप प्रत्यक्ष ठाकर मेरे पास बैठकर भोग लगा रहे हो|

गुरु जी अब तो मेरा भ्रम भी दूर हो गया है|अब मैं प्रत्यक्ष ठाकर की पूजा ही किया करूँगा|मलूक दास पास एक रात का विश्राम और वार्तालाप करके गुरु जी दूसरे दिन प्रातकाल ही मलूक दास को खुशी देकर आगे की ओर चल पड़े|

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