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शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Tuesday 3 June 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - रामभक्त श्रीहनुमान

ॐ श्री साँईं राम जी


श्रीहनुमानजी आजम नैष्ठिक ब्रह्मचारी, व्याकरणके महान् पण्डित, ज्ञानिशिरोमणि, परम बुद्धिमान् तथा भगवान् श्रीरामके अनन्य भक्त हैं| ये ग्यारहवें रुद्र कहे जाते हैं| भगवान् शिव ही संसारको सेवाधर्मकी शिक्षा प्रदान करनेके लिये श्रीहनुमानके रूपमें अवतरित हुए थे| वनराज केशरी और माता अञ्जनीको श्रीहनुमान् जी का पिता-माता होनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ| भगवान् शिवका अंश पवनदेवके द्वारा अञ्जनीमें स्थापित होनेके कारण पवनदेवको भी श्रीहनुमान् जी का पिता कहा जाता है| जन्मके कुछ समय पश्चात् श्रीहनुमान् जी सूर्यको लाल-लाल फल समझकर उन्हें निगलनेके लिये उनकी ओर दौड़े| उस दिन सूर्य-ग्रहणका समय था| राहुने देखा कि मेरे स्थानपर आज कोई दूसरा सूर्यको पकड़ने आ रहा है, तब वह हनुमान् जीकी ओर चला| श्रीहनुमान् जी उसकी ओर लपके, तब उसने डरकर इन्द्रसे अपनी रक्षाके लिये पुकार की| इन्द्रने श्रीहनुमान् जी पर वज्रका प्रहार किया, जिससे ये मूर्च्छित होकर गिर पड़े और इनकी हनुकी हड्डी टेढ़ी हो गयी| पुत्रको मूर्च्छित देखकर वायुदेवने कुपित होकर अपनी गति बन्द कर दी| वायुके रुक जानेसे सभी प्राणियोंके प्राण संकटमें पड़ गये| अन्तमें सभी देवताओंने श्रीहनुमान् जीको अग्नि, वायु, जल आदिसे अभय होने के साथ अमरत्वका वरदान दिया| इन्होंने सूर्यनारायणसे वेद, वेदाङ्ग प्रभृति समस्त शास्त्रों एवं कलाओंका अध्ययन किया| तदनन्तर सुग्रीवने इन्हें अपना प्रमुख सचिव बना लिया और ये किष्किन्धामें सुग्रीवके साथ रहने लगे| जब वालीने सुग्रीवको निकाल दिया, तब भी ये सुग्रीवके विपत्तिके साथी बनकर उनके साथ ऋष्यमूक पर्वतपर रहते थे|

भगवान् श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मणके साथ अपनी पत्नी सीताजीको खोजते हुए ऋष्यमूकके पास आये| श्रीसुग्रीवके आदेशसे श्रीहनुमान् जी विप्रवेशमें उनका परिचय जाननेके लिये गये| अपने स्वामीको पहचानकर ये भगवान् श्रीरामके चरणोंमें गिर पड़े| श्रीरामने इन्हें उठाकर हृदयसे लगा लिया और श्रीकेशरीकुमार सर्वदाके लिये श्रीरामके दास हो गये| इन्हींकी कृपासे सुग्रीवको श्रीरामका मित्र होनेका सौभाग्य मिला| वाली मारा गया और सुग्रीव किष्किन्धाके राजा बने|

सीताशोध, लंकिनी-वध, अशोकवाटिकामें अक्षयकुमार-संहार, लंकादाह आदि अनेक कथाएँ श्रीहनुमान् जीकी प्रखर प्रतिभा और अनुपम शौर्यकी साक्षी हैं| लंकायुद्धमें इनका अद्भुत पराक्रम तथा इनकी वीरता सर्वोपरि रही| मेघनादके द्वारा लक्ष्मणके मूर्च्छित होनेपर इन्होंने संजीवनी लाकर उन्हें प्राणदान दिया| राक्षस इनकी हुंकारमात्रसे काँप जाते थे| रावणकी मृत्युके बाद जब भगवान् श्रीराम अयोध्या लौटे, तब श्रीहनुमान् जी ने ही श्रीरामके लौटनेका शुभ समाचार श्रीभरतजीको सुनाकर उनके निराश जीवनमें नवीन प्राणोंका सञ्चार किया|

श्रीहनुमान् जी विद्या, बुद्धि, ज्ञान तथा पराक्रमीकी मूर्ति हैं| जबतक पृथ्वीपर श्रीरामकथा रहेगी, तबतक श्रीहनुमान् जीको इस धरा-धामपर रहनेका श्रीरामसे वरदान प्राप्त है| आज भी ये समय-समयपर श्रीरामभक्तोंको दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ किया करते हैं|

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