भाई भगतु व भाई फेरु की वार्ता
भगतु कहने लगे महाराज! जैसे आपकी इच्छा है वैसे सेवा बक्शो| परन्तु मुझे सेवा जरूर दो| गुरु जी प्रसन्न होकर कहने लगे तुम गुरु के लंगर के लिए खेती कराओ| गुरु की आज्ञा आते ही भगतु जी ने कर्मचारी और बैल तैयार करवाकर धरती जो जोता और बीज डाल दिया और संभाल करनी शुरू कर दी|
एक दिन खेत में काम करने वाले वालों ने कहा,भाई जी! रोटी हमें घी के साथ अच्छी तरह से दो| हम और भी अधिक उत्साह से काम करेंगे| भाई जी ने जब उनकी बात सुनी तो इधर उधर देखने लगे| उधार से एक फेरी वाला जा रहा था जिसके पास नमक,मिर्च,गुड़,घी इत्यादि था| उसको बुलाकर भाई जी कहने लगे इनको रोटी के साथ जितना घी चाहिए उतना दे दो| इस घी का मूल्य हमसे कल ले लेना| तब फेरी वाले ने काम करने वालो को अपनी कुपी में से एक एक पली घी दे दिया|
फेरी वाले ने घर जाकर घी वाली कुपी जिसमे थोड़ा सा घी बचा था, खूंटी पर टांग दिया| सुबह उठकर जब कुप्पी को तोलकर देखने लगा कि श्रमिकों को कितना घी खिलाया है| जिसके पैसे भगतु से लेने हैं| उसने जैसे ही कुप्पी को देखा व घी से लबा लब भरी हुई थी| यह कौतक देखकर फेरी वाला भगतु जी के पास गया और उनके पैरों में माथा टेका और कहने लगा कि मुझे अपना सिख बनाओ| भाई भगतु ने जब उसकी श्रद्धा देखी तो व उसे गुरु दरबार पर ले गया| भाई भगतु को देखकर गुरु जी कहने लगे परोपकारी भगतु किसको साथ लायेहो? भाई भगतु ने सारी बात बताई और यह भी कहा कि यह आपका सिख बनना चाहता है|
गुरु जी फेरी वाले से पूछने लगे कि आपका क्या नाम है और क्या करते हो| उसने कहा महाराज! मेरा नाम संगत है मैं फेरी लगाने का काम करता हूँ| गुरु जी ने वचन किया कि तू फेरी करता हुआ हमारी शरण में आया है इसलिए आज से तेरा नाम फेरु है| गुरु जी ने उसको अपना चरणामृत देकर सिख बना लिया और वचन किया फेरी का काम छोडकर सतिनाम का सिमरन किया और देग चलाया करो तुम्हें कभी कमी नहीं आएगी| इस प्रकार फेरु जी ने गुरु जी का वचन मानकर अपना ध्यान सतिनाम की याद में लगा दिया और तन मन से देग की कार चलाने लग गए|
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